कोविड 19 से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों का बहुत नुकसान हुआ है।
शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों के व्यक्तिगत और सामाजिक फायदे है। अच्छे शिक्षा और स्वास्थ्य का अर्थ है आने वाले समय मे अच्छी नौकरी, आमदानी और एक बेहतर जीवनस्तर। इसलिए किसी भी देश मे इन दोनों क्षेत्रों में खूब पैसा खर्च किया जाता है। कोविड 19 महामारी ने स्वास्थ और शिक्षा दोनों ही क्षेत्र में बहुत बुरा असर डाला है। पिछले डेढ़ साल से भारत के सभी स्कूल बंद है और शिक्षा पर ब्रेक लगा हुआ है। बहुत से विशेषग्य एवं वैज्ञानिकों की बात माने तो बच्चो पर कोविड का असर नगण्य है, फिर भी सरकार स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं दिखाई दे रहे हैं और ना ही इन डेढ़ सालों में शिक्षा के क्षेत्र में कोई अहम कदम उठाया है। वैज्ञानिक तथ्य है कि 6 से 11 सालों के बच्चों में कोरोना का खतरा सबसे कम है इसलिए प्राथमिक कक्षाओं को पहले प्रारंभ करने का सुझाव विशेषज्ञों द्वारा दिया जा चुका है परंतु सरकार द्वारा बड़ी कक्षाएं नौवीं से 12वीं को खोलने में ज्यादा जोर दिया गया और बहुत से राज्यों में नौवीं से 12वीं की कक्षाएं प्रारंभ भी हो गयी है।
प्राथमिक स्तर के बच्चों का स्कूल खुलना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि बड़े बच्चे पढ़ और समझ सकते हैं इसलिए उनके लिए सुचारू रूप से ऑनलाइन से शिक्षा प्राप्त करना भी आसान है लेकिन जो बच्चे अभी शुरुआती कक्षाओं में होते हैं जो गिनती एवं वर्णमाला एवं अन्य नए चीजे सीख रहे होते ऐसे में उन्हें व्यक्तिगत मार्गदर्शन की बहुत जरूरत होती है। सभी शिक्षकों ने इस महामारी में अपने स्तर से ऊपर उठकर कार्य किया है ताकि छात्रों तक शिक्षा पहुंच सके परंतु फिर भी स्कूल का सही समय मे खुलना बहुत आवश्यक है। जब भी इस कोविड महामारी का आकलन किया जाएगा तो संभव है कि सबसे बड़े नुकसान में से एक बच्चों की शिक्षा के रूप में उभर कर आएगा।
कोई नही कह सकता कि महामारी कब तक रहेगी और ये खतरा आम जीवन पर कब तक बना रहेगा। नेता और सरकार यह कह कर अपने जिम्मेदारी से भाग रहे है कि अभिभावक नही चाहते कि स्कूल खुले जो कि निराधार है, कोविड के बाद प्रारंभ हुए कुछ स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति सामान्य से भी अधिक है। समय आगया है कि अभिभावक सरकार से जवाब मांगे और सरकार बच्चो की शिक्षा को सुचारू रूप से चलाने हर जरूरी कदम उठाए।
खबर संगवारी के लिए एम एस श्रीजीत की रिपोर्ट।