भारत के मशहूर तीर्थ स्थलों की निर्माता देवी अहिल्या बाई होल्कर की जयंती पर खबर संगवारी की विशेष रिपोर्ट।
नारी शक्ति कितनी महान होती है, वह अपने जीवन में क्या कर सकती है इसका उदाहरण अहिल्या बाई होल्कर की जीवनी पढने के बाद आपको मिल जाएगा। जीवन में परेशानियाँ कितनी भी हो, उनसे कैसे निपटना है यह हमें अहिल्या बाई के जीवन से सीखना चाहिए। अपने जीवन काल में अहिल्या बाई होल्कर ने बहुत परेशानियों का सामना किया है लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी, यही वजह है की भारत सरकार ने भी उनको सम्मानित किया, उनके नाम डाक टिकेट भी जारी हुआ और आज अहिल्या बाई के नाम से अवार्ड भी दिया जाता है।
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव चौंढी में हुआ 31 मई 1725 ई. में हुआ था. इनके पिता का नाम मान्कोजी शिंदे एंव माता का नाम सुशीला शिंदे था। पिता ने अहिल्याबाई को बचपन में ही शिक्षा देना शुरू कर दिया था आपको जानकर हैरानी होगी की उस समय महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी लेकिन मान्कोजी ने अपनी बेटी को शिक्षा भी दी और अच्छे संस्कार भी। उनकी शादी बचपन में ही मराठा साम्राज्य के राजा खण्डेराव होलकर के साथ करवा दी गई।उस समय अहिल्याबाई की उम्र महज 8 वर्ष थी, वह 8 वर्ष की आयु में मराठा की रानी बन गई थी। अहिल्याबाई की शादी के 10 साल बाद यानि 1745 में उन्होंने मालेराव के रूप में पुत्र को जन्म दिया।सन 1748 में उन्होंने मुक्ताबाई नाम की पुत्री को जन्म दिया।अहिल्याबाई होल्कर का जीवन काफी सुखमय व्यतीत हो रहा था लेकिन 1754 में उनके पति खण्डेराव होलकर का देहांत होने कारण वो टूट गई थी। ससुर की बात मानकर अहिल्याबाई ने फिर से अपने राज्य के प्रति सोचते हुए आगे बढ़ी, लेकिन उनकी परेशानियां और उनके दुःख कम होने वाले नहीं थे। 1766 में उनके ससुर और 1767 में उनके बेटे मालेराव की मृत्यु हो गई. अपने पति,बेटे और ससुर को खोने के बाद अब अहिल्याबाई अकेली रह गई थी और राज्य का कार्यभार अब उनके उपर था।
अहिल्याबाई होलकर योगदान, भारत के लिए भूमिका
अहिल्याबाई होल्कर को आज देवी के रूप में पूजा जाता है, लोग उन्हें देवी का अवतार मानते है।उन्होंने अपने कार्यकाल में भारत के लिए अनेक ऐसे कार्य किये जिनके बारें में कोई राजा भी नहीं सोच सकता था। उस समय उन्होंने भारत के अनेक तीर्थ स्थलों पर मंदिर बनवाएं, वहां तक पहुँचने के लिए उन्होंने मार्ग निर्माण करवाया, कुँए एंव बावड़ी का निर्माण करवाया था. इसी वजह से कुछ आलोचकों ने अहिल्याबाई को अन्धविश्वासी भी कहा है।
अहिल्याबाई जब शासन में आई उस समय राजाओं द्वारा प्रजा पर अनेक अत्यचार हुआ करते थे, गरीबों को अन्न के लिए तरसाया जाता था और भूखे प्यासे रखकर उनसे काम करवाया जाता था।उस समय अहिल्याबाई ने गरीबों को अन्न देने की योजना बनाई और वह सफल भी हुई, लेकिन कुछ क्रूर राजाओं ने इसका विरोध किया।अहिल्याबाई को लोग माता की छवि मानते थे और उनके जीवनकाल में ही उन्हें देवी के रूप में पूजने लगे थे।
अहिल्याबाई होल्कर भारत सरकार द्वारा सम्मान
माता अहिल्याबाई होल्कर को आज भी उनके अच्छे कार्यों की वजह से याद किया जाता है, आजादी के बाद 25 अगस्त 1996 को भारत सरकार ने अहिल्याबाई होल्कर को सम्मानित किया. उनके नाम पर डाक टिकेट भी जारी किये और उनके नाम पर अवार्ड भी जारी किया गया है. भारत के अनेक राज्यों में अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा आज भी मौजूद है और आज भी पाठ्यक्रम में उनके बारें में बताया जाता है. उत्तराखंड सरकार ने उनके नाम पर एक योजना भी शुरू की है इस योजना का नाम ‘अहिल्याबाई होल्कर भेड़-बकरी विकास योजना’ है। आज देवी अहिल्याबाई होल्कर के जयंती पर उन्हें शत शत नमन।