सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदम्बा सरस्वती - बीके स्वाति दीदी

सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदम्बा सरस्वती - बीके स्वाति दीदी

सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदम्बा सरस्वती - बीके स्वाति दीदी

      सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदम्बा सरस्वती - बीके स्वाति दीदी

बिलासपुर। जब-जब संसार में दिव्यता की कमी, धर्म की ग्लानि, समाज में अन्याय, अत्याचार, चरित्र में गिरावट व विश्व में अशांति के बीज पनपने लगते हैं, तब-तब इन समस्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए किसी महान विभूति का जन्म होता है। इन्हीं में से एक महान विभूति थीं-जगदम्बा सरस्वती, जिन्हें प्यार से सभी मम्मा कहते है। 
उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थानीय शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन की संचालिका बीके स्वाति दीदी ने कहा। दीदी ने मातेश्वरी जगदंबा के विषय में बताते हुए कहा कि मम्मा के दो मुख्य स्लोगन थे - पहला हर घड़ी अन्तिम घड़ी और दूसरा हुक्मी-हुक्म चला रहा अर्थात ईश्वर के प्रति समर्पणता।
मम्मा सदा ध्यान रखती थी कि मुझे गुणवान बनना है, सभी के गुण देखना है, सभी को गुणदान करना है। मम्मा धारणा-मूर्त, शान्त-चित्त, मधुरता सम्पन्न, नम्र-निरहंकारी, सरलता एवं सादगी सम्पन्न, हर्षितमुख, शान्ति का अवतार, प्रेम की मूर्ति, गंभीर, रमणीक... सबके लिए उदाहरण रही। 
दीदी ने बताया कि जिन्होंने मम्मा के साथ रह उनके गुणों को पहचाना एवं मम्मा के मुख से मुरली सुनी ,उन्होंने बताया कि मम्मा का जीवन कितना साधारण व सेवा के प्रति तत्पर था। मम्मा सर्व गुणों की खान और मानवीय मूल्यों की विशेषताओं से सम्पन्न थीं। मम्मा ने कभी किसी को मौखिक शिक्षा नहीं दी बल्कि अपने प्रैक्टीकल जीवन से प्रेरणा दी। इसी से दूसरे के जीवन में परिवर्तन आ जाता था। मम्मा के सामने चाहे कितना भी विरोधी, क्रोधी, विकारी, नशा करने वाला आ जाता परन्तु मम्मा की पवित्रता, सौम्यता व ममतामयी दृष्टि पाते ही वह शांत हो जाता था और मम्मा के कदमों में गिर जाता था। मम्मा बहुत कम बोलती थीं और दूसरों को भी कम बोलने का इशारा करती थीं। अधिक बोलने से हमारी शक्ति नष्ट हो जाती है, ऐसा मम्मा का कहना था।
मम्मा की सत्यता, दिव्यता व पवित्रता की शक्ति ने लाखों कन्याओं के लौकिक जीवन को अलौकिकता में परिवर्तित कर दिया और उन कन्याओं ने विश्व को अपना परिवार स्वीकार करके विश्व की सेवा में त्याग व तपस्या द्वारा जुट गईं। इस प्रकार अपने ज्ञान, योग, पवित्रता के बल से विश्व की सेवा करते हुए मम्मा-सरस्वती ने 24 जून 1965 को अपने विनाशी देह का त्याग कर सम्पूर्णता को प्राप्त हुई। 
आज राजयोग भवन में 24 दिवसीय योग-तपस्या का समापन हुआ। सेवाकेन्द्र में मम्मा को 56 प्रकार के भोग लगाया गया तथा सुबह से ही ब्रह्माकुमार भाई-बहनों ने योग साधना करते हुए मम्मा की शिक्षा एवं चरित्रों को याद कर स्नेह पुष्प अर्पित कर सभी ने भोग स्वीकार किया। कार्यक्रम में कमल छाबड़ा, अमरजीत छाबड़ा, चंद्रकुमार निहलानी, चंद्रकिशोर ठाकुर, सुनील सोनकुसरे, अमित पामनानी, सुनील शुक्ला, नरेन्द्र पाण्डेय, दीपक मूरजानी, रंजना निहलानी, अंजू दुआ, दीपा मूरजानी आदि के साथ रतनपुर, सीपत, लखराम आदि के 250 से अधिक भाई-बहने उपस्थित थे।

ईश्वरीय सेवा में, 
देवी बहन 
बीके स्वाति 
राजीयोग भवन, बिलासपुर 98279 56485

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