गोवर्धन पर्वत सबसे पहले बजरंगबली ने उठाया था,,, रामाधार सारथी

गोवर्धन पर्वत सबसे पहले बजरंगबली ने उठाया था,,, रामाधार सारथी

गोवर्धन पर्वत सबसे पहले बजरंगबली ने उठाया था,,, रामाधार सारथी

    गोवर्धन पर्वत सबसे पहले बजरंगबली ने उठाया था,,, रामाधार सारथी

चंद्र दिवस के पावन अवसर पर श्री झूलेलाल मंदिर झूलेलाल नगर चकरभाटा में एक शाम भगवान झूलेलाल के नाम कार्यक्रम आयोजित किया गया कार्यक्रम रात्रि 8:00 बजे भगवान झूलेलाल बाबा गुरमुख दास जी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर बहराणा  साहब की अखंड ज्योत प्रज्वलित करके आरंभ  किया गया कार्यक्रम रात्रि 11:00 बजे समापन हुआ
कार्यक्रम में श्री रामाधार सारथी जय गुरु माता जागरण संगीत समिति रायपुर के द्वारा भक्ति मय कार्यक्रम की  शानदार प्रस्तुति दी गई
इस अवसर पर रामाधार जी  के द्वारा दो कथा सुनाई गई  एक थी द्वापर युग एवं दुसरी  त्रेता युग कि.उन्होंने कहा शास्त्रों के अनुसार जो वर्णन किया गया है वही सत्य घटना मैं बता रहा हूं .जब भगवान रामचंद्र जी रामेश्वर में समुंदर पर  सेतु  बांधने के लिए उपस्थित सभी भक्तजनों को बजरंगबली के वानर सेना को कहा जो भी बड़े-बड़े पत्थर है पहाड़ है सब को ले आओ और समुद्र में डालते जाओ जब हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को उठा कर ला रहे थे तब भगवान श्री रामचंद्र जी ने कहा सेतु का कार्य पूरा हो चुका है जो जहां से भी पर्वत बड़े पत्थर पहाड़ लाए हैं उनको वहीं पर पहुंचा दो जब हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को वापस उसी  स्थान पर रखा तब गोवर्धन  पर्वत से आवाज आई, हे वीर हनुमान जी क्या मुझे आपके प्रभु राम जी के दर्शन नहीं होंगे तब हनुमान जी ने कहा क्यों नहीं जरूर होंगे तब वह मानव शरीर धारण करके हनुमान जी के साथ गए और प्रभु रामचंद्र जी के दर्शन कर के कहा  प्रभु मुझे भी सेवा का अवसर दें  तब रामचंद्र जी ने कहा अभी सेतु का काम पूरा हो चुका है और तुम्हें सेवा का अवसर मिलेगा लेकिन इस युग में नहीं  द्वापर युग में 
जब श्री कृष्ण का अवतार लूंगा  तब मैं तुम्हें सेवा अवसर  दूंगा
शास्त्रों के अनुसार उन्होंने बताया कि पहले बड़े बड़े पर्वत को पंख लगे होते थे वह उड़ते थे पक्षियों की तरह एक जगह दूसरे जगह पहुंच जाते थे एक बार बड़ा पर्वत उड़ते उड़ते एक घनी बस्तियों के ऊपर बैठ गया जिसमें समस्त बस्तियां दब गई ,मानव  मर गए यह देखकर भगवान ने अपने भक्तों को कहा कि इन सभी के पर कतर दो तब से सभी पर्वत एक ही स्थान पर रहते हैं पर एक पर्वत ऐसा था जो उससे बचकर समुद्र के अंदर चला गया ताकि उसके  पर कोई काट ना सके पर वह आज भी समुंदर के अंदर में समाया हुआ है जिसे सोने का पर्वत कहा जाता है 
द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखाते हुए देवराज इंद्र  का घमंड तोड़ने के लिए एक छोटी सी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा लिया था और 7 दिन तक अपनी उस छोटी सी उंगली में पर्वत को उठा कर रखा था और समस्त गांव वालों को उस पर्वत के नीचे में शरण लेनी पड़ी थी त्रेता युग में  भगवान श्री रामचंद्र जी ने गोवर्धन पर्वत से  कहा था कि द्वापर युग में  आऊंगा तो  सेवा का मौका दूंगा आज भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत  को सेवा का मौका दिया 
कई भक्त भगवान को छप्पन भोग लगाते हैं पर यह शायद बहुत कम लोग जानकार होगे कि इस छप्पन भोग की परंपरा कहां से आरंभ हुई ?यह परंपरा भगवान श्री कृष्णा से आरंभ हुई जब भगवान श्री कृष्ण 7 दिनों तक गोवर्धन  पर्वत को उंगली में उठाए  रखे  थे और आठवें दिन जब पानी नीचे उतरा बरसात बंद हुई सब अपने-अपने घर के लिए चले गये भगवान श्री कृष्ण भी पर्वत को  को नीचे रखकर घर पहुंचे और भगवान श्री कृष्ण 1 दिन में 8 बार खाना खाते थे इस तरह 7 दिनों तक भूखे रहे घर पहुंचे मां से कहा मैया मुझे बहुत भूख लगी है 7 दिन से मैं भूखा हूं मैया ने कहा चिंता मत कर मैं तुम्हें पूरे 7 दिन का खाना एक साथ देती हूं इस तरह 1 दिन में भगवान श्रीकृष्ण 8,बार खाना  खाते थे  8, गुणा 7 करेंगे तो 56 होता है 
तब से भगवान को छप्पन भोग की परंपरा आरंभ हुई
कार्यक्रम में  भक्ति भरे भजन गाए 

चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है


पंखिड़ा ओ पंखिड़ा


जिए मुहजी सिंध 


बाबा गुरमुखदास जी आपकी याद आती है आप इस दिल में रहते हैं


क्यों करूं चिंता जब सतगुरु मेरे पास बैठे हैं


चंद्र का मेला आया है खुशियां लाया है

जेको खट्टी आयो  खैर सां  होजमालो

ऐसे कई भक्ति भरे भजन गाए इसे सुनकर भक्तजन झूम उठे

कार्यक्रम में साईं जी के द्वारा भी भक्तों के संग सिंधी छेज की गई व अपनी अमृतवाणी में साई  जी ने चंद्र दिवस की आए हुए सभी भक्त जनों को बधाई दी 
और कहा बड़े भाग्यशाली  लोग हैं जो  पावन अवसर पर भगवान के घर आते हैं भगवान श्री कृष्ण जी ने भी कहा है तुम दो कदम आओ मैं चार कदम  तुम्हारे पास आऊंगा बस जरूरत है सच्चे मन से प्रभु को याद करने की, गुरु का नाम जपने की तो आपके सारे दुख दर्द दूर हो जाएंगे यह तो संत, फकीरों, दरवेश का  स्थान हैं यहां लोग  आते हैं उनकी दुख तकलीफ दूर हो जाती है 
कार्यक्रम के आखिर में आरती की गई, पल्लो पाया गया, विश्व कल्याण के लिए प्रार्थना की गई, प्रसाद वितरण किया गया, आम भंडारे का आयोजन किया गया .भक्तजनों ने भंडारा ग्रहण किया व अपनी आत्मा और शरीर को तृप्त किया . 
बहराणा साहब को ढोल बाजों के साथ मंदिर से निकलकर साई  जी के द्वारा तलाब पहुंचे यहां पर विधि विधान के साथ बहराणा  साहब का विसर्जन किया गया व अखंड ज्योत को प्रवाहित किया गया.
इस पूरे आयोजन को सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव प्रसारण किया गया घर बैठे हजारों की संख्या में भक्तजनों ने कार्यक्रम का आनंद लिया
 आज के इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भक्तजन बिलासपुर, चकरभाटा ,बिल्हा,  भाटापारा, तिल्दा, रायपुर, दुर्ग ,राजनंदगांव,  गोंदिया चापा , रायगढ़ शहरों से आए थे इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में बाबा गुरमुखदास सेवा समिति एवं झूलेलाल महिला सखी  सेवा ग्रुप के सभी सदस्यों का विशेष सहयोग रहा


श्री विजय दुसेजा जी की खबर 

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