मां गंगा मैया मंदिर में नवरात्रि की भव्य तैयारी, दूरदराज से आने वाले भक्तों के लिए हो रही भोजन की व्यवस्था
बालोद जिले के ग्राम झलमला स्थित मां गंगा मैया शक्तिपीठ में शारदीय नवरात्रि की तैयारियां जोरों पर है। शारदीय नवरात्र सोमवार 26 सितंबर से शुरू होने जा रहा है, जो 4 अक्टूबर तक चलेगा। 5 अक्टूबर को विजयादशमी मनाई जाएगी। कोरोना महामारी के चलते पिछले 2 सालों से यहां नवरात्रि बहुत फीकी थी, लेकिन इस बार भव्य तरीके से त्योहार को मनाया जाएगा।
गंगा मैया मंदिर समिति के प्रबंधक सोहन लाल टावरी ने बताया कि इस बार 61 घी ज्योति कलश, 850 तेल ज्योति कलश और 51 अतिरिक्त तेल ज्योति कलश शीतला माता मंदिर में प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। मां गंगा मैया मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल नवरात्रि में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था
महंगाई के दौर में भी गंगा मैया मंदिर में भक्तों की सेवा के लिए 5 रुपए में पूड़ी-सब्जी की व्यवस्था की जा रही है, ताकि दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई दिक्कत न हो।
माता के अवरतरण की कथा
लगभग 133 साल पहले जिले की जीवनदायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था। उस दौरान झलमला की आबादी केवल 100 थी। सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था। बाजार में दूरदराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। इसके लिए बांधा तालाब की खुदाई कराई गई। गंगा मैया के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर
देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे वहां से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ। स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा। केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर मां की प्रतिमा जाल में फंस गई। प्रतिमा को वहां से बाहर निकाला गया। उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण वो गंगा मैय्या के नाम से विख्यात हुई।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति
मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया था। जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई। केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझकर उसे फिर से तालाब में डाल दिया। लेकिन इसके बाद उसने जब-जब जाल डाला, तब-तब यही प्रतिमा उसमें फंसती रही। इससे परेशान होकर केवट जाल लेकर अपने घर चला गया।
अंग्रेजों ने प्रतिमा को हटाने का किया था प्रयास, लेकिन नहीं हटा सके
बताया जाता है कि अंग्रेज एडम स्मिथ ने अपनी टीम के साथ तांदुला नहर निर्माण के दौरान गंगा मैया की प्रतिमा को वहां से हटाने के बहुत प्रयास किए थे, लेकिन नाकाम रहे।