संत माता राधा बाई अदी अम्मा जी की चालीसवी वार्षिक पुण्यतिथि तीन दिवसीय मनाई गई
बाबा थाहीरिया सिंह दरबार जरहाभाठा सिंधी कॉलोनी स्थित दरबार में संत माता राधा बाई अदि अम्मा जी की याद में उनकी 40 वीं वार्षिक पुण्यतिथि के अवसर पर
तीन दिवसीय महान कीर्तन दरबार सजाया गया
एवं गुरु का तीन दिवसीय पाठ साहब आरंभ हुआ
इस अवसर पर नवसारी गुजरात से सनी मूलचंदानी भाई साहब जी के द्वारा सत्संग कीर्तन करके साध संगत को निहाल किया उन्होंने गुरु नानक देव जी की व अन्य पंचम पातशाह जी के कई प्रसंग सुनाए उन्होंने कहा कि गुरु की गद्दी को परिवार की गद्दी नहीं हैं बल्कि इस गद्दी पर वही व्यक्ति बैठ सकता है जो सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलें जिन्हें ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो जो साथ संगत का भला करें सत्य की राह पर चले गुरु की वाणी को घर-घर तक पहुंचाएं ऐसा व्यक्ति ही गुरु की गद्दी का हकदार होता है इसलिए गुरु की गद्दी पर कोई भी सच्चा शिष्य ही बैठ सकता है जरूरी नहीं है कि गुरु का परिवार के सदस्य ही बैठे भाई साहब सनी मूलचंदानी ने कीर्तन में एक प्रसंग सुनाया एक बार एक भक्त को भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने थे उन्हें गुरु से कहा गुरु जी मुझे आज्ञा दें कि मैं भगवान जगन्नाथ दर्शन करके आऊ उन्होंने कहा ठीक है चलेंगे पहले जाकर सिंधु नदी में स्नान करके आओ जैसे ही वह भक्त सिंधु नदी में डुबकी लगाया और बाहर निकला तो देखा वह सिंधु नदी के पास नहीं है बल्कि जगन्नाथ पुरी के समुद्र के पास पहुंच गया है बाहर निकला समुद्र से किसी व्यक्ति से पूछा भाई यह कौन सी जगह है तो उन्हें बताया कि यह तो जगन्नाथ पूरी है वक्त समझ गया गुरु ने मुझे जगन्नाथपुरी भेज दिया और गुरु कहां है यह सोचकर वह आगे बढ़ता गया जैसे ही जगन्नाथ मंदिर के पास पहुंचा तो देखा सामने बैठे हैं गुरु के चरणों में गिर पड़ा और गुरु जी आप कब आए
गुरु ने कहा में तो तुम्हारे साथ ही आया हूं चलो अब अंदर दर्शन करें प्रभु के जैसे ही अंदर गए तो पर्दा लगा हुआ था दोपहर का समय था भगवान के भोजन का समय था पंडित जी ने कहा अभी प्रभु के भोजन का समय है उनको भोग लगाया जा रहा है आप सभी बाहर जाए भक्त ने कहा पंडित जी मैं तो बाहर चले जाता हूं पर इनको यही रहने दीजिए ये साक्षात परम गुरु परम ज्ञानी तपस्वी ईश्वर के रूप है पंडित ने कहा यहां से जाओ ऐसे रोज लोग आते हैं मैंने देखे हैं गुरु अपने भक्त के साथ बाहर आकर मंदिर से दूर एक पेड़ के नीचे बैठ गए कुछ समय बाद जैसे ही पंडित जी ने पर्दा हटाया और देखा कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति भी नहीं है
सोने के थाल में रखा भोजन भी गायब है चांदी के लोटे में जल भी गयब है पंडित ने शोर मचाया कि कोई साधु आया था और अपने चमत्कार से प्रभु को सोने का थाल भोजन लोटा सब उड़ा के ले गया है उधर पेड़ के नीचे बैठे गुरु भक्त के साथ चमत्कार हुआ भगवान जगन्नाथ स्वयं थाल भोजन का लेकर पहुंचे गुरु के पास और कहा प्रभु पहले आप इसे भोग लगाइए तभी मैं खा लूंगा और अपने आपको धन्य समझूंगा ये देख कर भक्त हैरान हो गया गुरु ने कहा प्रभु आप मंदिर छोड़कर क्यों आए यहां पर जगन्नाथ भगवान ने कहा जिस स्थान पर जिस जगह पर मेरे भक्तों की आवेला होगी अपमान होगा वहां पर मैं विराजमान नहीं हो सकता हूं गुरु ने भोजन को चखा और दूर से पंडित व अन्य लोग देखें कि एक अलौकिक ज्योति जल रही है जैसे वह निकट पहुंचे भगवान जगन्नाथ जी अंतर्ध्यान हो गए पंडित जी ने कहा देखो देखो यह थाल यहां पड़ा है ये चोर चोरी करके लाया है मूर्ति भी है चोरी करके लाया है तब अचानक आकाशवाणी हुई भगवान जगन्नाथ की आवाज आई हे मूर्ख पंडित तू क्या बोल रहा है यह सब मैंने लाया है यहां ये मेरा परम भक्त है तुमने सालों से मेरी पूजा की है पर तुमने आज मेरे परम भक्तों का अपमान किया है जब तक इससे माफी नहीं मांगोगे क्षमा नहीं ओर तुम्हे क्षमा नहीं करेंगे तब तक तुम्हें मेरी भक्ति का फल नहीं मिलेगा गुरु ने कहा हे भगवान आप जाइए मंदिर में अपने जगह पर और भक्तों को दर्शन दीजिए पंडित जी और सभी गुरु के चरणों पर गिर पड़े वह माफी मांगने लगे गुरु ने कहा सब उठिए मैंने आपसे क्षमा कर दिया मुझे आप से कोई गिला शिकवा नहीं है इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है की भगवान की पूजा करने से ही भगवान पसंद नहीं होते हैं बल्कि आप भगवान को अपने हृदय में बसाइए किसी से भेदभाव ना करें बल्कि हर इंसान में भगवान का रूप देखिए अपने भगवान को देखिए ऐसे अनमोल वचन गुरु की अमृतवाणी का रसपान करके साध संगत निहाल हुई
कीर्तन के आखिर में पाठ साहब को भोग लगाया गया
अरदास की गई प्रसाद वितरण किया गया गुरु का अटूट लंगर बरत्या गया
सभी गुरु प्रेमियों ने आज इस पावन अवसर पर पहुंचकर गुरु घर हाजिरी लगा कर अपने जीवन को सफल बनाया इस आयोजन को सफल बनाने में धन गुरु नानक दरबार के प्रमुख प्रबंधक भाई साहब मूलचंद नरवानी जी सेवादार डॉ हेमंत कलवानी जी पूर्व पार्षद सुरेश वाधवानी प्रकाश जगियासी विजय दुसेजा जगदीश जग्यशी विकी नागवानी नानक पंजवानी राजू धामेचा भोजराज नारा रमेश भगवानी सोनू लालचंदानी रमेश मेहरचंदानी गंगाराम सुखीजा जगदीश सुखीजा राजेश माधवानी चंदू मोटवानी विष्णु धनवानी भोजराज नरवानी मेघराज नारा अनिता नार वानी पलक हर्जपाल राखी वर्षा सुखीजा अन्य सदस्य उपस्थित थे।
श्री विजय दुसेजा जी की खबर