सनातन सिद्धान्तों पर आधारित शासन भारत के विश्वगुरु रहने का सदैव आधार रहा है : साईं मसन्द
भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की मुहिम के जनक साईं मसन्द साहिब का रीवा में हुआ व्याख्यान
रीवा/रायपुर। भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की मुहिम के जनक, मसन्द सेवाश्रम, रायपुर के पीठाधीश पूज्यपाद साईं जलकुमार मसन्द साहिब पिछले 10 वर्षों से देश के पूज्यपाद शंकराचार्यों एवं अन्य महान संतों के सहयोग से भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की मुहिम चला रहे हैं। वे 15 सितम्बर को एक दिन के प्रवास पर रीवा पधारे। रीवा की पूज्य सेन्ट्रल सिन्धी पंचायत द्वारा सायं 6 बजे सिन्धु भवन में भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के उनके अभियान के अंतर्गत उनका व्याख्यान आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में उपस्थित लोगों को पर्दे पर प्रोजेक्टर द्वारा साईं मसन्द साहिब के इस विषय पर 4 सितम्बर को परमहंसी गंगा आश्रम श्रीधाम में चातुर्मास कार्यक्रम के अवसर पर दिये गये 15 मिनट के उस व्याख्यान का वीडियो दिखाया गया जिसे ज्योतिर्मठ के वर्तमान शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा गठित की जा रही 11 लाख सनातनी कार्यकर्ताओं की सेना व अन्य इच्छुक लोगों के मार्गदर्शन हेतु वीडियो रिकार्डिंग कराया गया है।
अपने व्याख्यान में साईं मसन्द साहिब ने वर्तमानकाल में भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की आवश्यकता और उसकी सफलता के उपायों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अतीत में हर युग में भारत की ख्याति समूचे विश्व का कल्याण करने में समर्थ विश्वगुरु की रही है। उन्होंने इसका मूल कारण भारत में हर युग में शासकों द्वारा सनातन वैदिक सिद्धान्तों के महाज्ञानी राजगुरुओं के सानिध्य में राजकाज चलाने की अनिवार्यता होना बताया।
उन्होंने कहा कि सनातन वैदिक सिद्घान्त वस्तुतः स्वयं ईश्वर द्वारा मानव जीवन को सुखमय, आनन्दमय, शांतिमय और सार्थक बना सकने हेतु उपलब्ध कराया गया ज्ञान है। ये सिद्घान्त जहां एक ओर भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा, न्याय आदि हमारी समस्त मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति का दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे जीवन के मूल उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करने का आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।
उन्होंने बताया कि वर्तमानकाल में भारत की स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। एक प्रतिवेदन के अनुसार 35 प्रतिशत, करीब 45 करोड़ आबादी भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा आदि जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं। पाप की पराकाष्ठा का तो यह हाल है कि देश के सभी 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों के सभी 700 जिलों में एक भी जिला बाकी नहीं है जहां 6 महीने से 6 साल की अबोध बच्चियों से कुकर्म न हुए हों। उन्होंने कहा कि ऐसा जघन्य पाप संभवतः किसी युग में नहीं हुआ होगा।
साईं मसन्द साहिब ने कहा कि भारत की यह हृदय विदारक स्थिति निर्मित होने का मूल कारण वर्तमानकाल में लागू प्रजातान्त्रिक प्रणाली के अंतर्गत स्वीकृत संविधान में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों रूपी शासकों के लिये राजगुरुओं की अनिवार्यता लागू न होना है। उन्होंने बताया कि भारत के सर्वोच्च धर्मगुरु पूज्यपाद जगदगुरु शंकराचार्यों एवं देश के करीब दो सौ अन्य महान सन्तों से प्रत्यक्ष मंत्रणा कर वर्तमान प्रजातान्त्रिक प्रणाली के अंतर्गत ही भारत में पुनः सनातन वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित शासन स्थापित करवाकर इसे फिर से विश्वगुरु बनाने का प्रयास किए जाने की सहमति प्राप्त की जा चुकी है।
कार्यक्रम के आरंभ में साईं मसद साहब का स्वागत संत कमल उदासी, पूज्य पंचायत के अध्यक्ष सरदार प्रहलाद सिंह, संत लाल आहूजा, शंकर शहानी, प्रकाश शिवनानी, हुकूमत होतवाणी, वसदेव कुलचंदानी, महेश ठारवानी, लधाराम ठारवानी आदि ने किया। इस अवसर पर साईं मसन्द साहिब ने रीवा नगर के प्रति अपनी शुभकामनाओं के प्रतीक रूप में पूज्य पंचायत के अध्यक्ष सरदार प्रहलाद सिंह जी को शाल पहना कर अभिनन्दन किया। कार्यक्रम का संचालन पंचायत के सचिव शंकर साहनी एवं आभार प्रदर्शन महासचिव राजकुमार टिलवाणी ने किया।कार्यक्रम मे संत सांई सरूपदास उदासी, गोपाल पुरी, कन्हैया लाल, कमलेश सचदेव, कन्हैया घन्शानी, जे. पी. भाई, सिंधु पराग के संपादक विजय थावाणी, कैलाश आहूजा, विनोद पठान, मनीष चांदवानी, लेखराज मोटवानी, हर भगवान सिंह, रमेश कुंजवाणी आदि अनेक गणमान्य नागरिक उपभस्थित रहे।