ज्ञान वैराग्य के बिना सम्भव नही है, ओर वैराग्य संसार मे रहकर ही मिलता है भागकर नही:संत श्री राम बालक दास जी,

ज्ञान वैराग्य के बिना सम्भव नही है, ओर वैराग्य संसार मे रहकर ही मिलता है भागकर नही:संत श्री राम बालक दास जी,

ज्ञान वैराग्य के बिना सम्भव नही है, ओर वैराग्य संसार मे रहकर ही मिलता है भागकर नही:संत श्री राम बालक दास जी,

ज्ञान वैराग्य के बिना सम्भव नही है, ओर वैराग्य संसार मे रहकर ही मिलता है भागकर नही :संत श्री राम बालक दास जी

पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा प्रतिदिन उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में उनके भक्त गणों के लिए ऑनलाइन सत्संग आयोजित किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी विभिन्न समसामियिक,व्यवहारिक,धार्मिक जिज्ञासाओं का समाधान बाबा जी के मधुर वाणी में प्राप्त करते हैं और अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं आज के सत्संग परिचर्चा में दाता राम साहू जी ने जिज्ञासा रखी की, उमा दारु जोषित की नाईं।सबहि नचावत रामु गोसाईं।। इस चौपाई पर प्रकाश डालने की कृपा करें,इन चोपाई पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि जब हम संसार की प्रपंच कार्यों में उलझ जाते है और हमारी मती काम नहीं करती है तब हमें परमात्मा के उस पाराशक्ति रूप को प्रणाम करते हुए इस बात को बार-बार बार-बार स्मरण करना चाहिए कि अंततः मैं कितना भी हाथ पैर मार लूं होगा तो वही जो ईश्वर चाहेंगे, कर्म करना तो हमारे हाथ में है पर फल की इच्छा हम नहीं कर सकते होना तो वही है जो ईश्वर चाहेंगे लेकिन हम उसके लिए कर्म ना करें ऐसा कदाचित नहीं है क्योंकि कर्म करने पर ही हमें समुचित फल प्राप्त होगा, लेकिन सब कुछ करने के बाद भी अगर हमारे अनुसार फल प्राप्त नहीं होता है तो हमे सोचना चाहिए कि मैं कौन होता हूं अच्छा या बुरा करने वाला वह तो ऊपर वाला ही है जो मेरे लिए सब कुछ तय करते हैँ
    
बाबा जी ने ज्ञान और वैराग्य के विषय में स्पष्ट करते हुए बताया कि ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नहीं कि हम वैराग्य धारण कर ले और ज्ञान का औचित्य यह भी नहीं कि हमें कुछ जानकारी प्राप्त हो गई है तो हम ज्ञानी हो गए,या किसी को जान लेना ज्ञान का अर्थ होता है ईश्वर में समाहित हो जाना है ज्ञान,, और यह ज्ञान वैराग्य के बिना असंभव है वैराग्य का अर्थ क्या है कुछ लोगों के अनुसार इसका अर्थ है संसार को त्याग देना ,तो ऐसा बिलकुल नहीं है संसार में रहकर भी जब हमारा मन संसार के प्रति आसक्त ना हो तब वह वैराग्य है संसार को तो हमने त्याग दिया हो फिर भी हमारा मन संसार के मोह माया में लगा है तो वह केवल और केवल पाखंड है,रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट किया है कि वह संसार जिसमें देवता भी आने को तरसते हैं उससे कोई इंसान कैसे दूर रह सकता है, यहां की मोह माया उसी प्रकार है जिस तरह से हमारे शरीर में होने वाला कोई घाव,संसार में रहते हुए भी उस वैराग्य को प्राप्त करने के उपाय संतों ने बताए हैँ की जीवन में संयम होना चाहिए और वह कैसे आएगा इसे देखते हैं, वह पशु जीवन की भांति जीने से नहीं आता जिस तरह हमारे धर्म ग्रंथों में परंपराएं बताई हुई है वैसे जीवन जीना ही संयम होता है जब ब्रह्म मुहूर्त में उठना है तो उठना है इस के पश्चात स्नान श्रद्धा भाव भक्ति से करना है और बड़ों को प्रणाम करते हुए अपनी दिनचर्या का प्रारंभ करना है तत्पश्चात अपने कर्मों से निवृत्त होकर संध्या वंदन करना है संध्या वंदन के बाद तक प्रतिदिन साधु संतों का सत्संग करना या। सद्ग्रन्थों का पाठ, यथोचित संयम पूर्वक भोजन ग्रहण करना है यह दिनचर्या हमारे जीवन में आवश्यक नहीं कि यह पूरे 30 दिन हो,,30 दिन में कम से कम 28 दिन तो हम इस तरह के दिनचर्या का पालन कर ही सकते हैं
    
इस प्रकार बाबा जी आज का ज्ञान पूर्ण सत्संग संपन्न हुआ 
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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