ज्ञान को प्राप्त करने जरूरी नहीं हम वैराग्य धारण कर लें: संत रामबालक दास
पाटेश्वर धाम के संत रामबालक दास सत्संग में बताया कि जब हम संसार की प्रपंच कार्यों में उलझ जाते है और हमारी मति काम नहीं करती है तब हमें परमात्मा के उस पाराशक्ति रूप को प्रणाम करते हुए इस बात को बार-बार बार-बार स्मरण करना चाहिए कि अंततः मैं कितना भी हाथ पैर मार लूं। कर्म कर फल की इच्छा हम नहीं कर सकते। बाबा ने ज्ञान और वैराग्य के विषय में स्पष्ट करते हुए बताया कि ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नहीं कि हम वैराग्य धारण कर लें और ज्ञान का औचित्य यह भी नहीं कि हमें कुछ जानकारी प्राप्त हो गई है तो हम ज्ञानी हो गए या किसी को जान लेना ज्ञान का अर्थ होता है ईश्वर में समाहित हो जाना है ज्ञान।
यह ज्ञान वैराग्य के बिना असंभव है, वैराग्य का अर्थ क्या है। बाबा ने कहा कि कुछ लोगों के अनुसार इसका अर्थ है संसार को त्याग देना ,तो ऐसा बिलकुल नहीं है संसार में रहकर भी जब हमारा मन संसार के प्रति आसक्त ना हो तब वह वैराग्य है। संसार को तो हमने त्याग दिया हो फिर भी हमारा मन संसार के मोह माया में लगा है तो वह केवल और केवल पाखंड है।