सनातन वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित शासन भारत के विश्वगुरु रहने का सदैव आधार रहा है : साईं मसंद
वसणशाह की वर्सी में उल्हासनगर आए भारत को विश्वगुरु बनाने की मुहिम चला रहे साईं मसन्द मिले प्रेस से
रायपुर। सिन्धी समुदाय के विख्यात देशभक्त सन्त, मसन्द सेवाश्रम रायपुर के पीठाधीश साईं जलकुमार मसन्द साईं वसणशाह साहिब की वर्सी में शामिल होने उल्हासनगर आए हैं। पूज्यपाद साईं वसणशाह साहिब उनके परनाना हैं। साईं मसन्द १० वर्षों से देश के पूज्यपाद शंकराचार्यों, जगद्गुरुओं एवं अन्य महान सन्तों के सहयोग से भारत में हर युग में लागू रहे सनातन वैदिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म के शासन को देश में वर्तमान प्रजातांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत ही स्थापित करवाकर भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने की मुहिम चला रहे हैं। उन्होंने आज प्रेस को अपनी मुहिम के सम्बंध में जानकारी दी।
साईं मसन्द साहिब ने कहा कि अतीत में भारत सोने की चिड़िया कहे जाने वाले धनधान्य से भरपूर एक समृद्घशाली राष्ट्र होने के साथ-साथ समूचे विश्व का मार्गदर्शन करने वाला विश्वगुरु भी रहा है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण भारत में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हर युग में वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित धर्म का शासन होना रहा है। धर्म के शासन की प्रणाली के अन्तर्गत हर छोटे बड़े राजा का सनातन वैदिक सिद्धान्तों के ज्ञानी एक राजगुरु का रहना अनिवार्य होता था। इतिहास में कभी भी कोई राजा बिना राजगुरु के नहीं रहा है। राजा अपने राजगुरुओं के मार्गदर्शन में राजकाज चलाते धे।
उन्होंने कहा कि वैदिक सिद्धांत जहां एक तरफ जीवन को सुखी, समृद्घ एवं सार्थक बनाने हेतु भोजन, वस्त्र, आवास आदि हमारी समस्त मूलभूत आवश्यकओं की पूर्ती का दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे मानव जीवन के मूल उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करने का आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। विश्व के कई बड़े देश वैदिक शास्त्रों के अध्ययन हेतु सैकड़ों वैज्ञानिक नियुक्त कर अपनी उन्नति में हमारे सनातन ज्ञान का लाभ उठा रहे हैं। वहीं भारत अपनी संस्कृति को छोड़ विदेशी संस्कृति अपनाने के कारण भ्रष्टाचार, गरीबी व अमानवीयता से ग्रसित हो गया है।
उन्होंने कहा कि इतिहास में जब कभी किसी राजा ने अपने राजगुरु से मुख मोड़कर राजकाज चलाया तो वे पथभ्रष्ट हो जाते थे। इसका कारण यह है कि मनुष्य जब आध्यात्म एवं सद्गुरु से संलग्न रहता है तो वह देव वृत्ति का रहता है और उससे दूर होने पर मायावी शक्ति के प्रभाव में फंसकर असुर वृत्ति का हो जाता है। तब हर बार यथा राजा तथा प्रजा की तर्ज पर देश की प्रजा भी नीच प्रवृत्ति की हो जाती थी। इससे देश में पाप बहुत बढ़ जाते थे। तब स्वयं ईश्वर कोई अवतार लेकर उस शासक को समाप्त कर शासन की बागडोर किसी धर्मात्मा को सौंप कर देश में पुन: धर्म का शासन स्थापित कराते रहे हैं।