शरद पूर्णिमा पर हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्य गोष्ठी

शरद पूर्णिमा पर हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्य गोष्ठी

शरद पूर्णिमा पर हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्य गोष्ठी

शरद पूर्णिमा पर हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्य गोष्ठी

 

आज दिनांक 9.10.2022 दिन रविवार को हस्ताक्षर साहित्य समिति के द्वारा शरद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में स्थानीय निषाद समाज प्रांगण में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।इस कार्यक्रम में खुले आसमां के नीचे औषधि युक्त खीर प्रसाद के लिए रखा गया। कार्यक्रम का सुभारंभ मां सरस्वती की पूजा अर्चना से की गई। सर्वप्रथम अरूणिमा स्मारिका विमोचन पर समीक्षा बैठक हुई। जिसमें उपस्थित सभी साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य महिलांगे एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्ञानेन्द्र सिंह ने की । विशेष अतिथि के रुप में कामता प्रसाद देशलहरा उपस्थित थे। शरद पूर्णिमा पर्व के महत्व पर विचारकों ने अपने विचार व्यक्त किए। ज्ञानेन्द्र सिंह ने अपने उद्बबोधन में कहा-शरद पूर्णिमा परंपरागत तरीके से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है।बरसात खत्म होने पर शरद ऋतु में ओस गिरती है,और यही ओसअमृतमय हो जाती है।शरद पूर्णिमा का आयोजन धार्मिक एवं साहित्यिक दोनों क्षेत्रों में होता है।
आचार्य महिलांगे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-यह ऋतु प्रसन्नता की ऋतु है।हमारे व्यावहारिक एवं दार्शनिक दोनों दृष्टियों से इसका महत्व है।यह ऋतु स्वास्थ्यवर्धक है।इस ऋतु को माता के समान पोषक कहा गया है।सरिता सिंह गौतम ने बताया कि यह ऋतु बड़ी मोहक होती है।दिन से रात अधिक सुंदर लगने लगती है।आकाश से बादलों का पलायन हो जाता है। स्वच्छ सुंदर आकाश में तारे चमकने लगते हैं।हवा में फूलों की मीठी गंध के साथ सिहरन फैलने लगती है।शरद की सुषमा का हमारे मनीषियों ने अच्छा चित्रण किया है।शरद ऋतु को विवेक की ऋतु कहा जाता है। विवेक की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का पूजन भी शारदीय नवरात्र में होता है।

विचार गोष्ठी उपरांत सरस काव्य गोष्ठी में कवियों ने सरस रचनाओं का पाठ किया।
अमित कुमार सिन्हा ने- ज़िंदगी खेलती है मुझसे खिलौने की तरह
इस रचना से सभी को प्रभावित किया।
संतोष कुमार ठाकुर ने महंगाई पर सशक्त रचना सुनाई-अच्छे दिनों की आस बड़ी है,
महंगाई घर के द्वार खड़ी है
वरिष्ठ साहित्यकार जनाब लतीफ़ खान की छत्तीसगढ़ी रचना ने सबका मन मोह लिया -कहूं ला तैं जोड़ी बनाए ले पहिली,
बने चीन्ह लेबे ठगाए ले पहिली
उरक जाते लघियात बईमानी के धन,
बिचारव गा थोकिन कमाए ले पहिली।
शमीम अहमद शिद्दिकी ने अपनी क्षणिकाएं सुना कर सोचने पर मजबूर किया-कैसे कह दूं ख़ता ,ख़ता नहीं,
झूठ सरदार बोलता ही नहीं,
आज के रहनुमा का क्या कहना,
कह दिया फिर कहा, कहा ही नहीं। किशोर संगदिल ने विकलांग बेसहारों को अपना कर नवजीवन देने वालों पर सत्य घटना पर रचना पाठ किया।
ज्ञानेन्द्र सिंह ने हास्य व्यंग पर आधारित सशक्त रचना सुनाई-
अधिकतर व्यंग्यकार अपनी पत्नी पर कविता लिखते हैं, मंचों पर तालियां बटोरते हैं,
और घर में जाकर पिटते हैं।
आचार्य महिलांगे ने शरद ऋतु पर आधारित कविता सुनाई अमृत है शरदपूर्ण चंद्र, प्राणियों के लिए वरदान है।
जीवन मंगलमय बनाता,प्रकृति का यहअवदान है।।
सरिता सिंह गौतम की भावपूर्ण रचना इस प्रकार रही- 
मेरी राहों से गुजर रहा होगा,
फूलों जैसा बिखर रहा होगा
वक्त़ ने उसको मोम बनाया है,
कल जो पत्थर रहा होगा।।इस कार्यक्रम में अमित प्रखर की श्रीकृष्ण पर रचना को सबने सराहा। धर्मेंद्र श्रवण,शोभा बेंजामिन, कामता प्रसाद, घनश्याम पारकर एवं गोविंद पणिकर ने अपनी प्रतिनिधि रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। 

काव्यगोष्ठी की समाप्ति के बाद सभी को खीर वितरित की गई। हस्ताक्षर साहित्य समिति के अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र सिंह के द्वारा समिति के सभी सदस्यों को साहित्य के प्रति उत्कृष्ट योगदान के लिए "हस्ताक्षर साहित्य सम्मान"पत्र प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम में राजेन्द्र साहू,निजाम,मोहन लाल साहू की विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम का सफल संचालन अमित प्रखर के द्वारा एवं धन्यवाद ज्ञापन संतोष कुमार ठाकुर के द्वारा किया गया।

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