जिव्हा पर वाणी और स्वाद का नियंत्रण रखें - संत रामबालकदास
जिव्हा पर वाणी का नियंत्रण न होने से यह हमें अप्रिय बना सकती है तथा स्वाद पर नियंत्रण न होने से हमारे खान - पान के विवेक को डिगा सकती है इसलिये हमेशा जीभ पर अपना नियंत्रण रखें।
पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में संत रामबालकदास जी ने रहीम के दोहे "रहिमन जिव्हा बावरी, कहि गइ सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खाय कपाल।। पर प्रकाश डालते हुये कहा कि वाणी मधुर होने पर व्यक्ति दुश्मन को भी मित्र बना लेता है वहीं अप्रिय वाणी से अपने भी पराये बन जाते हैं। शरीर का जख्म तो कुछ दिनों में भर जाता है लेकिन कटु शब्दों का दिया जख्म लंबी अवधि तक बना रहता है। रहीम ने कहा कि जीभ तो बावरी है यह भला बुरा कहकर मुॅह के अंदर चली जाती है इस पर किसी का नियंत्रण नहीं लेकिन इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है सिर, गाल एवं शरीर के अन्य हिस्सों को। इसलिये सोच समझकर ही बोलना चाहिये। कबीरदास ने भी कहा है " शब्द सम्हारे बोलिये, शब्द के हाथ न पाॅव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।।
जिव्हा पर स्वाद का भी नियंत्रण आवश्यक है। जीभ के स्वाद के कारण ही लोग मांसाहार एवं अन्य अपवित्र खाद्य पदार्थ खाते हैं। जीभ की स्वाद के वशीभूत हो खाद्य, अखाद्य पदार्थों का ध्यान नहीं रखते। दो इंच की जीभ पर लगाम न होने से अपना अमूल्य जीवन नारकीय बना लेते हैं। ईश्वर ने हमें अनमोल मानव शरीर प्रदान किया है इसके माध्यम से जीवन का कल्याण करें।
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