खुशी बांटना ही बढ़ाने का साधन है- बी. के. संतोषी दीदी
आज के समय मनुष्य शरीर की बीमारियों से ज्यादा मानसिक व्याधियों से पीड़ित है। मानसिक तनाव किसी भी कारण से हो सकता है। पारिवारिक कलह-क्लेश, रिश्तों में दबाव, मनमुटाव, चाहे वह पारिवारिक तनाव हो या किसी कार्य क्षेत्र का तनाव। तब कई तरह के नकारात्मक विचार तथा कमजोर भावनाएं मन में जगह बनाना शुरू करती है। इन्हें दूर करने के लिए मन को सशक्त बनाने की आवश्यकता हैं।
मानव संसाधन विकास विभाग, एसईसीएल, में स्ट्रेस मैनेंजमेंट विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में बी.के. संतोषी दीदी ने बताते हुए कहा, कि राजयोग मेडिटेशन हमारे अनियंत्रित विचारों को सकारात्मक दिशा देता है। राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से हम अपने विचारों की दिशा बदल कर उन्हें सुख, शांति, सकारात्मक विचारों में परिवर्तन करना शुरू करते हैं। और धीरे-धीरे हमारा मन शांति की अनुभूति करना शुरू करता है और तनाव कम होता है। इसके अलावा मेडिटेशन हमारे स्वाभिमान और सहन शक्ति को भी बढ़ाता है। राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास तनाव की स्थिति से तुरंत बाहर लाता है। क्योंकि तनाव नकारात्मक विचारों का प्रेशर है। और जब इन्ही अनियंत्रित विचारों को एक सही दिशा मिल जाती है। तो यही विचार हमारे में नया उमंग उत्साह और आत्मविश्वास जगाते हैं। और हमें शांति तथा खुशी की अनुभूति कराते हैं। राजयोग मेडिटेशन अर्थात् जिस प्रकार बैटरी का संबंध बिजलीघर के साथ होने से बैटरी में फिर से शक्ति भर जाती है, उसी प्रकार आत्मा अर्थात् स्वयं का संबंध सर्वशक्तिमान परमात्मा से होने के कारण स्वयं में अनेक शक्तियों का विकास होता है। इन्हीं शक्तियों की कमी के कारण आज घर परिवार बिगड़ते जा रहे हैं, घर घर में कलेश बढ़ रहा है, जिसके फलस्वरूप मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है और नई-नई बीमारियां भी उत्पन्न हो रहे हैं। परंतु राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास इन सब बातों को जड़ से समाप्त कर देता है। मन को तनाव से मुक्त रखने के लिए दीदी ने राजयोग मेडिटेशन की अनुभूति कराया।
बी.के. नंदनी दीदी ने कहा कि, मां बिना किसी अपेक्षा के अपने बच्चों को परिवार को प्रेम, ख़ुशी, दुआ देना ही जानती है। इसलिए मां की तुलना भगवान के बराबर की गई है क्योंकि भगवान भी अपेक्षा नहीं रखता है। वह देना ही जानता है, तो परमात्मा से जब हम संबंध जोड़ते हैं, तब हमे परमात्मा से प्राप्तियां होने लगती है।
जिसे हम दूसरों को देना शुरू करते है तो सामने से हमे भी मिलना शुरू हो जाता है। पर कई बार ऐसा होता है, कि एक तरफ से होता है, कि हम देते ही रहते हैं और दूसरों से मिलता नहीं है। तो भी हमें बस देते जाना है। क्योंकि जितना देंगे उतना हमारे अंदर तो उतना बढ़ता ही जाएगा। जिस प्रकार नई गाड़ी आप लेकर आए बाजार से और ढक कर रख दी महीना 2 महीना चलाओ ही नहीं तो क्या होगा बैटरी डिस्चार्ज। गाड़ी की बैटरी को चार्ज करने के लिए गाड़ी को चलाना पड़ता है। जितनी गाड़ी चलती है। बैटरी चार्ज रहती है। चलाना बंद कर दिया रख दिया, तो बैटरी डिस्चार्ज हो गई। ठीक यही हमारे जीवन के साथ है, जीवन के अंदर अगर अपनी बैटरी को चार्ज रखना है, तो बांटते जाओ उस उर्जा का उपयोग संबंध में, व्यवहार में, कर्म में, बोल में इस प्रवाह को फैलाते जाना है। जितनी यह उर्जा उपयोग करेंगे उतनी बैटरी चार्ज होगी। अंत में सभी को एरोबिक्स करवाया।