भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे इसे ही भागवत कहते है- आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज

भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे इसे ही भागवत कहते है- आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज

भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे इसे ही भागवत कहते है- आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज

भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, से ज्ञान, से वैराग्य और त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे इसे ही भागवत कहते है- आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज

श्री सत्तीचौरा माँ दुर्गा मंदिर, गंजपारा दुर्ग में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज कहा कि मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं। लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्रायश्चित जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है।
     
कथा व्यास आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे जी महाराज ने पांडवों के जीवन में होने वाली श्रीकृष्ण की कृपा को बड़े ही सुंदर ढंग से दर्शाया। कहा कि परीक्षित कलियुग के प्रभाव के कारण ऋषि से श्रापित हो जाते हैं। उसी के पश्चाताप में वह शुकदेव जी के पास जाते हैं। भक्ति एक ऐसा उत्तम निवेश है, जो जीवन में परेशानियों का उत्तम समाधान देती है। साथ ही जीवन के बाद मोक्ष भी सुनिश्चित करती है। आचार्य जी ने कहा कि द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षयपात्र की प्राप्ति किया। हमारे पूर्वजों ने सदैव पृथ्वी का पूजन व रक्षण किया। इसके बदले प्रकृति ने मानव का रक्षण किया। भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा दिखाई नहीं देता है वह हर किसी में बसता है।

    
श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के फर्क को बताती है। श्रीमद् भागवत महापुराण श्रवण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है। क्योंकि कल्पवृक्ष मात्र तीन वस्तु अर्थ, धर्म और काम ही दे सकता है। मुक्ति और भक्ति नही दे सकता है। लेकिन श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है।
     
उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है। धुन्धकारी जैसे शराबी, कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का उद्धार हो जाता है। उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है। इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्यों कि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है। जीवन की अन्तिम बेला में दादा भीष्म गोपाल का दर्शन करते हुये अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया। साथ साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हे मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा श्रवण से सूना जीवन धन्य हो जाता है। श्रीमद्भागवत कथा में जीवन का सार छिपा है। यह प्रेम और करुणा की महत्ता समझाती है। स्वामी जी के मुख से कथा सुनने मात्र से ही कष्ट दूर हो गए। कथा में आज के मुख्य यजमान तरुण पांडेय द्वारा सप्तनिक भागवत जी एवं व्यास जी का पूजन कर भव्य आरती की. 
  
 श्री सत्तीचौरा माँ दुर्गा मंदिर में संगीतमय भागवत कथा दिनाँक 17 नवम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से प्रारंभ होगी, कल की कथा में पृथु प्रियव्रत एवं जड़ भरत चरित्र का वर्णन किया जावेगा..
आज दीसरे दिवस की भागवत कथा में मुख्य रूप से तरुण पांडेय, दिनेश पुरोहित, मनोज यादव, किरण सेन, कुलेश्वरी जायसवाल, मोना शर्मा, अंशुल पांडेय, सूजल शर्मा, चन्दा शर्मा, मिथला देवी शर्मा, लक्ष्मी यादव, प्रशांत कश्यप, चंचल शर्मा, राकेश गुप्ता, प्रतिभा गुप्ता, उमाकांत देशमुख, रमाकांत देशमुख, सुखराम देशमुख, अंशु साहू दीनानाथ देवांगन राम देवांगन माया वर्मा हरीश सिन्हा ललिता सिन्हा राजू यादव शिव सिन्हा रुकमणी सिन्हा संजय सिन्हा उपस्थित थे..

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