हुआ है संगत का असर,आ गया दर्द को खुशी लिखना हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी

हुआ है संगत का असर,आ गया दर्द को खुशी लिखना हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी

हुआ है संगत का असर,आ गया दर्द को खुशी लिखना हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी

हुआ है संगत का असर,आ गया दर्द को खुशी लिखना हस्ताक्षर साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी

23 दिसम्बर को समिति के पदाधिकारियों का चुनाव


दल्लीराजहरा: लगभग तीन दशक से सक्रिय स्थानीय साहित्यकारों की हस्ताक्षर साहित्य समिति की बैठक गत दिनों स्थानीय निषाद समाज भवन में निर्विघ्न रूप से संपन्न हुई। समिति के पदाधिकारियों का कार्यकाल पूर्ण होने के कारण बैठक में नए पदाधिकारियों का चुनाव हेतु 23 दिसंबर शुक्रवार की तिथि सर्वसम्मति से तय की गई। बैठक के बाद काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया ।जिसमें रचनाधर्मियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
                  
काव्यगोष्ठी की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जनाब लतीफ़ खान ने अपनी रचना -"कथरी ओढ़ के घिंव ला खाये हबर परे मां मुहुं लुकाए के जरिये व्यवस्था पर एवं दोमुंहे लोगों परकटाक्ष किया।जीवन की डगर बीत रही है।यादों को हम पिरोते चले जा रहे है।आने वाले वर्ष का नए उत्साह के साथ स्वागत करने को लेकर अमित कुमार सिन्हा की रचना की बानगी देखिए- चलते,चलते बीत रहा,
यह वर्ष भी देखो आखिर,
कुछ यादों को छोड़ रहा,
देकर संदेशा न्यारा फिर।

ललित शंकर महलवार नेअपनी रचना
तुमसे ऐसा क्या है नाता,
मन ये बरबस डोल जाता। के माध्यम से वाह वाही बटोरी।

धर्मेंद्र कुमार श्रवण ने गर्मी के मौसम का सास्वत चित्रण अपनी रचना "जरत हे भुइंया जनावत हे भोंभरा,घाम ला देख के
 चिचियावत से डोकरा ।के जरिये किया।
 सरिता सिंह गौतम ने युवाओं को प्रेरित करने वाली सशक्त रचना का पठन कर पूरे सदन की वाहवाही बटोरी। रचना की पंक्ति कुछ इस तरह से - 
हर नए सांचे में ढलना जानते हैं,
 हम समय के साथ चलना जानते हैं,
सामने तूफान हो,हमको नहीं डर
हम हवाओं का रुख बदलना जानते हैं
साहित्य हस्ताक्षर कामता प्रसाद ने अपनी रचना पढ़ी एक दिसंबर से गुरुपर्व मनायेंगे,
घर आंगन में दीप जलाएंगे।
सफेद झंड़ा फहराएंगे।
संतोष कुमार ठाकुर ने अपनी कलम के माध्यम से आज की पीढ़ी को आगाह करते हुए संदेश दी।रचना की पंक्ति कुछ ऐसा-
मनखे के ये आधार होगे,
सुख सुविधा के भरमार होगे।
 कतना मन हे पढ़े लिखे अऊ
 कतना मन अनपढ़ निराधार होगे।
  
वरिष्ठ साहित्यकार शमीम सिद्दिकी ने जिंदगी की हकीकत को बयां करती रचना पढ़ी। 
हुआ है संगत का असर,
आ गया दर्द को खुशी लिखना
समय ने मुझको सिखाया है शमीम,
रेत की देह पर नदी लिखना

श्री सिद्दकी के पठन का दौरान उपस्थित लोगों ने वाहवाही के साथ करतल ध्वनि से हौसला अफ़जाई किया।
रचनाकार घनश्याम पारकर की इन पंक्तियों ने ददा दाई के चोला तरस गे,तीरथ धाम नई पाय,खरतरिहा वो कर बेटा,हाडा ला गंगा ले जाए ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

इस दौरानआचार्य श्री महिलांगे ने अरूणिमा पुस्तक पर काव्यात्मक समीक्षा प्रस्तुत की।कार्यक्रम का संचालन संतोष ठाकुर आभार अमित कुमार सिन्हा ने व्यक्त किया
कार्यक्रम में मोहनलाल साहू की विशेष उपस्थिति रही।

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