दुर्ग।नगर निगम के पूर्व एल्डरमैन डॉ. प्रतीक उमरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र प्रेषित कर दहेज निरोधक कानून में संशोधन
की मांग किया है।जिसकी प्रतिलिपि उन्होंने केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू एवं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाय चंद्रचूड़ को भी प्रेषित किया है।प्रधानमंत्री कार्यालय ने उक्त सुझाव का स्वागत किया है।उन्होंने बताया कि दहेज निरोधक कानून अर्थात धारा 498ए के बढ़ते दुरुपयोग पर निचली अदालतों से लेकर स्वयं सुप्रीम कोर्ट तक अनेक बार चिंता प्रकट कर चुके हैं।वर्ष 2005 में सुशील कुमार बनाम भारत सरकार के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसके बेजा इस्तेमाल पर गहरी चिंता जताते हुए भारत में कानूनी आतंकवाद फैलने की आशंका भी व्यक्त की थी।महिलाएं इसका ग़लत इस्तेमाल कर रही हैं.झूठे केस दर्ज हो रहे हैं.हिंसा के ठोस सुबूत के बिना इस धारा का बद-इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है.महिलाओं की बढ़ा-चढ़ाकर कर पेश की गई शिकायतों में बेकसूर परिवारजनों को फंसा दिया जाता है.दहेज मामले में ससुराल के सारे लोगों को लपेटना प्रवृत्ति बन गई है।नतीजतन वे परेशान होते हैं और कई बार उनकी गिरफ़्तारी भी हो जाती है.इसलिए इस 'दुरुपयोग' को रोकने के लिए संसद व सुप्रीम कोर्ट को पहल करने की आवश्यकता है।सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले भी कहा था कि ससुराल पक्ष के लोगों को फंसाने के लिए दहेज प्रताड़ना कानून का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है।सिर्फ आरोपों के आधार पर रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई करना इस कानून के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया का भी दुरुपयोग है.दहेज प्रताड़ना का आरोप किसी पति और उसके रिश्तेदारों के लिए कभी न मिटने वाले बदनामी के दाग की तरह है.इस प्रवृत्ति का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए।लेकिन इसके समाधान के लिए कोई पहल आज तक नहीं किया गया।कई दहेज प्रताड़ना के झूठे मामलों में निर्दोष लोग व उनके परिवारजन आत्महत्या करने को मजबूर हो चुके हैं।आज यह सबसे बड़ी सामाजिक समस्या बन चुकी है।थोड़ा सा भी वैवाहिक अनबन होते ही विवाहिता एवं उसके परिजन पहले पुलिस थानों में दहेज प्रताड़ना की झूठी शिकायत दर्ज करवाते हैं और फिर समझौता के नाम पर मोटी वसूली की जाती है। अक्सर दहेज प्रताड़ना की शिकायत में पीड़ित मुख्य तौर पर अपने पति, सास, ससुर, ननद, देवर, जेठ आदि का नाम दर्ज कराते हैं। पिछले दिनों में ऐसे ही आंकड़ों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शिकायतकर्ता कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं।कोर्ट ने इसमें पुलिस को आरोपी को तुरंत गिरफ्तार करने पर रोक लगा दी थी।सुप्रीम कोर्ट ने गाइड लाइन जारी की थी कि इन मामलों में जांच के बाद ही गिरफ्तारी की जाए।अगर पुलिस जांच में मामला झूठा पाया जाए तो पुलिस उसे रद्द भी कर सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस झूठे मामलों को रद्द तो कर देती है लेकिन झूठे मामले दर्ज करने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाती।हालांकि अधिकांश मामलों में पुलिस को मालूम होता है कि मामला फर्जी है लेकिन दर्ज करना कानूनन उनकी मजबूरी होता है।इस तरह के मामलों में झूठी शिकायत दर्ज कराने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने व कड़ी सजा का भी प्रावधान करने की आवश्यकता है।नियम अनुसार उन पर एफआईआर होना चाहिए, ताकि झूठी शिकायतों की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सके।समाज और न्याय व्यवस्था में असंतुलन दूर करना विधिवेत्ताओं के साथ-साथ समाज का भी दायित्व है।किसी एक पक्ष को न्याय दिलाने के लिए पूर्वाग्रहों से ग्रसित नहीं होना चाहिए कि दूसरा पक्ष बिना अपराध के ही प्रताड़ित और अपमानित होता रहे।एक पक्षीय कानून कभी इन्साफ नहीं कर सकता। जब 1961 में दहेज निरोधक कानून बना था तब विधिवेत्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि इस कानून का इस सीमा तक दुरुपयोग होगा।महिलाओं को तमाम तरह के अपराधों,शारीरिक मानसिक शोषण,प्रताड़ना और हिंसा से उन्हें बचाने के लिए कानूनी कवच दिए गए हैं, इससे उनकी स्थिति पहले से अधिक मजबूत हुई है।लेकिन ऐसी दास्तानों की कोई कमी नहीं कि इन कानूनों ने अनेक लोगों और परिवारों की जिंदगी तबाह करके रख दी है।अनेक परिवार तनाव भरी जिंदगी जी रहे हैं। पति इंसाफ के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं।कानून वेत्ताओं का कहना है कि दहेज प्रताड़ना के 90 फीसदी मामले झूठे पाए जाते हैं। इन मामलों में सामाजिक व्यवस्था असंतुलित हो रही है। दहेज निरोधक कानून के निरंतर दुरुपयोग नेे समाज के एक तबके को भयभीत कर दिया है।