अच्छे व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है – बीके स्वाति दीदी
18 जनवरी 2023, बिलासपुर। इस दुनिया में कुछ लोग इतिहास बनाते हैं तो कुछ लोग ऐसे महान कर्म करते हैं जो खुद ही इतिहास बन जाते हैं। वह अपने पीछे ऐसे निशान छोड़ जाते हैं जो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए मार्ग प्रदर्शक और प्रेरणास्त्रोत बन जाते हैं। ऐसे महान युगपरिवर्तक थे प्रजापिता ब्रह्मा बाबा। जिनका उद्देश्य सर्व मनुष्य आत्माओं को एक ऐसे सूत्र में बांधाना था जिससे मानवता की डोर ऐसी मजबूत बने जहां शांति, सदभाव और आपसी प्यार हो। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा ने 18 जनवरी 1969 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, संस्था के सदस्य इस दिन को स्मृति दिवस के रूप में मनाते हैं।
उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थानीय शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन की संचालिका बीके स्वाति दीदी ने संस्था के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 54 वी पुण्य स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में कहा। दीदी ने ब्रह्मा बाबा की जीवन कहानी सुनाते हुए कहा कि 1876 को सिंध, हैदराबाद में खूबचंद कृपलानी के घर दादा लेखराज का जन्म हुआ था। उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं कि थी कि ये दिव्य बालक आगे चलकर परमात्मा शिव का साकार माध्यम बनेगा और नई दुनिया के स्थापना के कार्य में युगपुरूष की भूमिका निभाएगा। उन्हें देखकर हर कोई यही सोचता था कि पुत्र हो तो ऐसा हो, क्योंकि फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है लेकिन अच्छे व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है। और हुआ भी यही उनके श्रेष्ठ संस्कार और सद्व्यवहार की खूशबू चारों ओर फैलने लगी थी, अपनी चमत्कारी बुद्धि और अथक पुरूषार्थ द्वारा वे एक प्रसिद्ध जौहरी बन गए थे, धीरे धीरे सफर आगे बढ़ता गया। राजकलोचित संस्कार, अनुशासनप्रिय और उज्जवल चरित्र के धनी दादा लेखराज के जवाहरात के व्यवसाय के कारण उस समय के राजपरिवारों से उनका काफी धनिष्ठ संपर्क हो गया था। विपुल धन संपदा और मान प्रतिष्ठा पाकर भी उनके स्वभाव में नम्रता, मधुरता और परोपकार की भावना सदैव बनी रही।
ब्रह्मा बाबा के जीवन में महान बदलाव की शुरुआत
दीदी ने बताया कि बाबा का पारिवारिक और व्यापारिक जीवन, लौकिक दृष्टि से सफल और संतुष्ट था लेकिन जब बाबा लगभग 60 साल के थे, तब उनका मन भक्ति की ओर अधिक झुक गया। वे कारोबार के साथ-साथ ईश्वरीय मनन-चिंतन में लवलीन और अर्न्तमुखी होते गए। बाबा को अंदर से प्रेरणा हुई कि अब अपने व्यापार को समेटना चाहिए। बाबा का अपने हीरे-जवाहरात के व्यापार से मन उठने लगा था। प्रजापिता ब्रह्मा ने परमात्मा शिव की प्रेरणा से विश्व कल्याण के लिए सन् 1937 में इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थापना की नींव रखी। जिसके बाद ब्रह्मा बाबा ने स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन की अग्नि को तेज करते हुए गहन तपस्या से विश्व शांति का अलख जगाया। संसार में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं हुआ जिसने ब्रह्मा बाबा की तरह समाजोत्थान का पताका नारी शक्ति के हाथों सौंपा हो। बाबा ने माताओं, बहनों की परछाई बनकर उन्हें शक्ति स्वरूपा बना दिया। यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता का भाव जगाकर माताओं बहनों का सम्मान करते हुए उन्हें इस महान सेवा के बागडोर के प्रतिनिधित्व का दायित्व सौंपा। आज उसी का परिणाम है जो ब्रह्माकुमारी संस्था विश्व विख्यात हो गई है। आज विश्वौ के 140 देशों में आध्यात्म और राजयोग का संदेश देकर तनावमुक्त और खुशहाल जीवन जीने की कला सिखा रही है। लोगों को दिव्यगुणों से आंतरिक शक्तियों से संपन्न बना रही है। इस ईश्वरीय मार्ग पर जीवन में भले ही कितने न आंधी व तूफान आए लेकिन बाबा सदा अटल रहे क्योंकि उन्हें इस बात का निश्चय था कि जिसका साथी स्वयं भगवान है उसका आंधी या तूफान भला क्या बिगाड़ पाएंगे और उनके पीछे जिस शक्ति का हाथ है वो दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है।
दीदी ने कहा कि आज भले ही मन को शांत बनाने के लिए मेडिटेशन और ध्यान का महत्व दुनिया के सामने अब आया है या दुनिया अब समझ रही है लेकिन परमात्मा ने ब्रह्मा बाबा के द्वारा एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए 85 साल पहले से ही मन जीते जगतजीत का मंत्र देते हुए राजयोग को जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाने का संदेश दिया था। आज हम सभी उनका स्मृति दिवस, विश्व शांति दिवस के रूप में मनाते हैं।
राजयोग भवन में ब्रह्मा बाबा के स्मृति दिवस कार्यकर्म में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। आज सुबह से ही योग साधना का कार्यक्रम चलता रहा। सेवाकेंद्र में ब्रह्मा बाबा की समाधी का प्रतिरूप शान्ति स्तम्भ बनाया गया था।