नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने मकर संक्रांति पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने मकर संक्रांति पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने मकर संक्रांति पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने मकर संक्रांति पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया


दल्लीराजहरा 15 जनवरी। मकर संक्रांति यानी इस पर्व को नई खुशियां, नई चेतना और नई उर्जा का आगमन माना जाता है।इस मौके को कोई खोना नही चाहता है।नगर की ख्यातिलब्ध हस्ताक्षर साहित्य समिति द्वारा स्थानीय निषाद समाज भवन में मकर संक्रान्ति पर्व पर काव्य गोष्ठी का आयोजन लतीफ खान के मुख्यअतिथि एवं घनश्याम पारकर की अध्यक्षता में किया गया। विशेष अतिथि के रूप में गोविंद कुट्टी पणिकर उपस्थित थे।

कार्यक्रम के प्रारंभ में मां सरस्वती की पूजा अर्चना के उपरांत काव्य गोष्ठी की शुरुआत की गई। कवि आनंद बोरकर ने अपनी रचना भारत कोई भूखंड नहीं,ये सनातन की धरती है, के जरिये सांस्कृतिक मूल्यों को उकेरा। 
मोहन साहू ने अपनी रचना = वाह रे जमाना तेरी हद्द हो गई
बीबी के आगे मां रद्द हो गई ,कविता से उपस्थित लोगों की वाहवाही बटोरी।

अमित कुमार सिन्हा युवाओं को प्रेरित करने वाली रचना ऐ मेरे दिल,बोल मेरे यार
चल कुछ करते हैं धमाल के माध्यम से अपनी रचना की ओर ध्यान खींचा।

 वरिष्ठ साहित्यकार लतीफ़ खान की गांव की मिट्टी को लेकर शहर में रोज़ी रोटी के लिए रहने वाले लोगो की मार्मिक पीड़ा दर्शाती हुई कुछ इस तरह रही,जिसे सभी ने मुक्तकंठ से सराहा -
जब भी याद आए मुझे गांव की सुंदर मिट्टी,
शहर में रोता हूं, आंखों से लगा के मिट्टी
रोज़ी रोटी के लिए शहर में आया जिस दिन,
खूब रोई मेरे कदमों से लिपट कर मिट्टी
गोविन्द कुट्टी पणिकर ने जो प्यार बांटना हो महावीर बुद्ध सा
महलों को छोड़ कर कहीं सड़कों पे आईए,
चाहत है रोशनी की अगर दिल में आपके,
गोविन्द आफताब सा खुद को जलाइए। प्रस्तुत की। 
शमीम सिद्दिकी ने बसंत के आगमन को लेकर अपनी रचना के जरिये कुछ इस तरह से आव्हान किया-
  ओ,बसंत तुम चले मत जाना
तन भी झुलसे,मन भी झुलसे
इस पीड़ा का कोई अंत नहीं,
सब के साथी संग फिरे,
मुझे बिरहन के अंत नहीं ,
घनश्याम पारकर ने छत्तीसगढ़ी रचना के माध्यम से सीख देने का प्रयास किया रचना की पंक्ति कुछ इस तरह से -वाह वाह रे शीशी के दारू,
छठ्ठी होए चाहे मरनी,पीए भर होवत से उतारू
मिटकहा घलो सीख जथे बोले बर
बढ़िया दवा हे, कोंदा के मुहुं खोले भर
 सरिता सिंह गौतम की रचना की बानगी इस प्रकार रही
आपका प्यार मेरी दौलत है,
क्या करूं शौक मैं,ख़ज़ाने का,
होश जबसे गया तुम्हारे साथ,
नाम लेता नहीं है,आने का

 साहित्यकार धर्मेंद्र कुमार श्रवण ने संकल्प यही हमारा, संस्कार हम गढ़ेंगे
संस्कार गढ़ लिया तो, परिवार बढ़ चलेंगे के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया।
घर तो एक मंदिर है, बुजुर्ग हैं देवी देवता,
कुटुंब के संगे संबंधी, पूजनीय है माता पिता,
मंदिर के बन पुजारी,दिन रात पूजा करेंगे
टी एस पारकर ने छतीसगढ़ी रचना मोर छत्तीसगढ़ गढ महतारी हम लईका तोर चिन्हारी,
बार बो, दिया, अंधियारी में,मनाबो सुख के देवारी के जरिये संदेश दिया। 
राजेश्वरी ठाकुर की गांव के जीवन पर रचना इस प्रकार रही= कुछ पल अपनी सखी के साथ खिलखिला कर
खपरैल पर थोड़ी सी अंगार मांग ,ला कर,और बाडी से कुछ छोटी,मोटी लकड़ियां उठा कर,
हां, जतन करती हूं मैं,सांझे चूल्हे की आग सुलगा कर सेवाहवाही बटोरी।

संतोष ठाकुर "सरल" की प्रेरणास्पद रचना देश में खुशहाली और शांति का वातावरण हो,
बंधुत्व,प्रेम भाव का,हर हृदय नव जागरण हो ने उपस्थित लोगों में उत्साह का संचार किया।युवा साहित्यकार अमित प्रखर ने भगवान श्री राम के व्यापक स्वरूप पर सशक्त रचना सुनाई।
कार्यक्रम का संचालन अमित प्रखर आभार आंनद बोरकर ने व्यक्त किया।

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