मकर संक्रांति पर्व सूर्य की 12 राशियां होती है

मकर संक्रांति पर्व सूर्य की 12 राशियां होती है

मकर संक्रांति पर्व सूर्य की 12 राशियां होती है

मकर संक्रांति पर्व सूर्य की 12 राशियां होती है


सूर्य की 12 राशियां होती है और वर्ष में 12 महीने होते हैं सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रांति कहते हैं सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है देवताओं का 6 महीने का दिन होता है एवं 6 महीने का दक्षिणायण याने देवताओं की रात होती है मकर संक्रांति हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से माना जाता है इस विशिष्ट काल की महिमा गोस्वामी तुलसीदास ने गाई है "माघ मकर गति रवि जब होई-तीरथ पतिहि आव सब कोई" माघ महीने में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो सभी लोग तीर्थों में आकर स्नान-दान आदि करते हैं ऐसी मान्यता है कि सारे तीरथ गंगा किनारे आ जाते हैं इसीलिए कहते हैं "सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार" इस दिन स्नान का बहुत महत्व है इस दिन स्नान करने वाले सात जन्मो तक निरोगी व स्वस्थ रहते हैं स्नान न करने वाला रोगी व निर्धन रहता है बुंदेलखंड में कहावत है मकर संक्रांति के दिन स्नान न करने वाला लंका का गधा बनता है शास्त्रों में भी स्नान के संदर्भ में कहा गया है ।।रवि संक्रमणे प्रासेन स्नानाधयस्तु मानव:-सप्तजन्मनि रोगों स्ध्यानी निर्धन जायते।। इसलिए इस दिन प्रात: उठकर सूर्योदय से पूर्व बिस्तर त्याग देना चाहिए व स्नान जरूर करना चाहिए गंगा तट पर या किसी भी नदी तालाब या घर पर ही गंगाजल व तिल डालकर या तिल का तेल लगाकर स्नान करना चाहिए इस दिन किए गए दान अक्षय होते हैं कंबल, गर्म कपड़े,तिल,गुड़,खिचड़ी व धन दान करना चाहिए मकर संक्रांति के दिन शरीर त्यागने(मृत्यु) होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए भीष्म पितामह ने इच्छा मृत्यु को प्राप्त होने पर लगभग महाभारत के समय 40 दिन तक सरसैया पर पड़े रहने के बाद मकर संक्रांति पर ही अपने शरीर को त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया।
आज भी प्रयागराज की पुण्यभूमि में लोग कल्पवास माघ-मास में करते हैं ऐसी मान्यता है कि एक मास तक गंगा स्नान करने से चारों युगों का पुण्य प्राप्त होता है आज के दिन लाखों लोग त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य कमाते हैं मान्यता है कि भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर व गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को माघ स्नान करने से मुक्ति मिली थी आज के दिन मां सरस्वती का भी उद्गम होता है।

मकर संक्रांति से तिल-तिल कर दिन बढ़ता है व रात छोटी होती है ज्योतिष के अनुसार संक्रांति किस पर सवार होकर आ रही है क्या खा रही है वह चीजें (वस्तुएं) महंगी होती है जैसे पीले वस्तु पर तो स्वर्ण,दाले,अनाज व सफेद पर तो चांदी, एलमुनियम इत्यादि ऐसा कहते हैं।
मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है यह सूर्य के अनुसार पर्व से आता है जब सूर्य मकर रेखा से गुजरता है तब 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति पर्व आता है कभी-कभी गणना अनुसार 13 या 15 जनवरी को भी पड़ जाता है मकर संक्रांति को पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है तमिलनाडु में पोंगल,असम में बिहु,पंजाब व हरियाणा में लोहड़ी,उत्तर भारत में संक्रांति,सिंधियों में तिर-मुरी के रूप में मनाया जाता है इस दिन तिल एवं मुली को अग्नि में डालते हैं। तिल-गुड़ का सेवन करते हैं मूंग व उड़द दाल की मंगोड़ी,खिचड़ी खाते हैं गुजरात व अन्य प्रांतों में पतंग उड़ाने का महत्व है कई जगह पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं मकर संक्रांति हर्षोल्लास उत्सव का पर्व है मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
प्रेषक-करमचंद गावडा
संत शदाणी नगर बोरियाकला
रायपुर (छ,ग)
9301121819

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