परम पूज्य परम श्रद्धेय सरलमना तपोनिधि मौनसाधिका श्री कीर्ति जी महाराज आदि ठाणा-5 के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रवचन

परम पूज्य परम श्रद्धेय सरलमना तपोनिधि मौनसाधिका श्री कीर्ति जी महाराज आदि ठाणा-5 के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रवचन

 परम पूज्य परम श्रद्धेय सरलमना तपोनिधि मौनसाधिका श्री कीर्ति जी महाराज आदि ठाणा-5 के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रवचन
 परम पूज्य परम श्रद्धेय सरलमना तपोनिधि मौनसाधिका श्री कीर्ति जी महाराज आदि ठाणा-5 के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रवचन 
डोंडी —फोटो001— परम पूज्य परम श्रद्धेय सरलमना तपोनिधि मौनसाधिका श्री कीर्ति जी महाराज आदि ठाणा-5 के पावन सान्निध्य में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रवचन सभा का आयोजन जैन स्थानक  भवन में किया गया। सर्वप्रथम मंगलाचरण से प्रवचन का शुभारंभ मधुर व्याख कीर्ति जी महाराज ने अक्षय तृतीया पर भगवान ऋषभदेव के श्रेयांस कुमार द्वारा करवाए गए। ईशु रस पारणे पर सारगर्भित पावन प्रवचन फरमाया। तपस्विनी बहन कांता जी ढेलडियां का 4 वां वर्षी तप का पारणा ईशु रस से करवा। महाराज साहब ने बताया सर्वप्रथम 2019 को गुरु महाराज का उनके घर पर आगमन हुआ जहां पर सुनील भाई ने गुरु महाराज विजय मुनि जी के सामने कुछ त्याग करने की इच्छा जाहिर की जिस पर वर्षी तप की भावना का पचकान दिलाने की बात पर उनकी धर्म सहायिका कांता बहन ने भी साथ वर्षी तप का पचकान धारण किया 2 वर्ष साथ में वर्षी तप करने के पश्चात शरीर की साता नहीं होने से सुनील भाई ने आगे तप नहीं किया परंतु कांता बहन द्वारा लगातार आज 4 वर्षों तक वर्षी तप किया जो की बहुत ही कठिन तप होता है अपने आत्मा के उत्थान के लिए उनका यह तप आगे भी करने की भावना थी स्वास्थ्य की साता नही होने को देखते परिवार की बातों को मान आज उनका पचकान कराया गया धन्य है सुनील भाई व कांता बहन।
परिवार और डोंडी जैन संघ की ओर से उनका सम्मान व सुख साता पूछ तप का अनुमोदन भी किया गया। गौरतलब है की तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। इसके प्राचीनत्व के मूल में कारण है क्योंकि यह पर्व आदिम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव से सम्बन्धित है जो कि स्वयं ही इसके करोड़ों वर्ष प्राचीनता का प्रमाण है। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव दीक्षोपरान्त मुनिमुद्रा धारण कर छह माह मौन साधना करने के बाद प्रथम आहारचर्या के लिए निकले।यहां ज्ञातव्य है कि तीर्थंकर क्षुधा वेदना को शान्त करने के लिये आहार को नहीं निकलते, अपितु लोक में आहार दान अथवा दान तीर्थ परम्परा का उपदेश देने के निमित्त से आहार चर्या के लिए निकलते हैं। अत: उचित विधि का अभाव होने से वे सात माह तक निराहार रहे। एक बार वे आहार चर्या के लिए हस्तिनापुर पहुंचे। उन्हें देखते ही राजा श्रेयांस को पूर्व भवस्मरण हो गया, और श्रेयांश राजा के हाथों भगवान ऋषभदेव ने चारित्र की वृद्धि तथा दानतीर्थ के प्रवर्तन के लिए अक्षय तृतीया के दिन पारणा की। अत: यह वर्षीतप अत्यन्त गौरवशाली है तथा राजा श्रेयांस द्वारा दानतीर्थ का प्रवर्तन कर हम सभी पर किए गए उपकार का स्मरण कराता है। बहन समता संचेती द्वारा भी 4 वर्षों से वर्षी तप  किया जा रहा है जो कि आगे भी निरंतर बढ़ता रहेगा उनका भी सम्मान श्री संघ द्वारा आज किया गया।परिवार  की ओर से सबको प्रभावना वितरित की गई व गन्ने का रस भी पिलाया गया। पारणा कार्यक्रम में जैन समाज सहित दिगर संघों से सैकड़ों की संख्या में जैन अनुयाई पहुंचे थे श्रीसंघ से प्रमुख रूप से कन्हैयालाल बाघमार, सुभाष ढेलडिया,ज्ञानचंद बाघमार ,मांगीलाल गुणधर, राजेंद्र नाहर, संतोष ढेलडिया, पूनम कोठारी ,मनोज गुणधर, आशीष बुरड़ ,पप्पू ढेलड़िया,लाल चंद जैन,भावेश गुणधर,
सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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