वैदिक साहित्य में ऋषि मनु द्वारा लिखित मनुस्मृति का स्थान सबसे ऊँचा...
वैदिक साहित्य में ऋषि मनु द्वारा लिखित मनुस्मृति का स्थान बहुत ऊँचा है।इसमें वेदों के आधार पर चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र), जो गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर हैं, जन्मगत आधार पर नहीं, और चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) सुपरिभाषित करके इनका स्वरूप एवं कर्त्तव्य-कर्म स्पष्ट किये गये हैं।
• मनुस्मृति में राजधर्म, राजकर, सम्पत्ति-विभाजन, राजदण्ड आदि के ऐसे नियम दिये गये हैं कि आधुनिक संविधान में भी उन्हीं को आधार बनाया गया है।इस कारण मनु को कहा जाता है—Manu the Law-Giver. मनुस्मृति में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति के निश्चित उपाय समझाये गये हैं। परन्तु इसके ढाई हज़ार श्लोकों में आधे से अधिक अब प्रक्षिप्त हैं।प्रक्षिप्त का पालन उचित नहीं और प्रक्षिप्त के दोष से मूल स्वर्ण का तिरस्कार भी अनुचित है।
• त्रेता युग में राम का शासन चलते समय ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायणम् और द्वापर युग में भारत-युद्ध के बाद ऋषि व्यास द्वारा रचित भारतम् (बाद में नाम महाभारतम् हुआ) ऐतिहासिक महाकाव्य हैं, जिनमें वास्तविक इतिहास का वर्णन नैतिक शिक्षाओं का समावेश करते हुए किया गया है।परन्तु रामायणम् के २४ हज़ार श्लोकों में ८०% और महाभारतम् के एक लाख में ९०% श्लोक बाद में मिलाये हुए अर्थात् प्रक्षिप्त हैं।
• महाभारतम् का भाग गीता को बताया गया है, जिसमें सात सौ श्लोक हैं।युद्ध-क्षेत्र में कृष्ण अर्जुन को इतने अधिक विषयों पर इतना लम्बा प्रवचन नहीं कर सकते थे।शोधकर्त्ताओं ने बीस और अधिकतम सत्तर श्लोक ही मौलिक बताये हैं।अस्तु, तीनों ग्रन्थों में वर्त्तमान और भविष्य के लिए उत्कृष्ट प्रेरणाएँ भरी हुई हैं।