हस्ताक्षर साहित्य समिति द्वारा आयोजित कविगोष्ठी में कवियों साहित्यकारों ने अपने अपने रंग बिखेरे.. "संबंधों का ना टूटे तटबंध"
दल्लीराजहरा: नगर की लब्ध प्रतिष्ठित संस्था हस्ताक्षर साहित्य समिति की बीते 28 मई रविवार को स्थानीय निषाद समाज भवन में मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन जे आर महिलांगे की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।विशेष अतिथि के रूप में शमीम अहमद सिद्दकी उपस्थित थे। गोष्ठी में उपस्थित रचनाधर्मियों , साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से आज के दौर में सामाजिक बुराइयों से छुटकारा पाने हेतु समाज को संदेश देने का प्रयास किया।
हस्ताक्षर साहित्य समिति ने अपनी स्थापना के चालीस वर्ष पूर्ण कर लिए है।इस दौरान इस संस्था ने लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार दिए है साथ ही नव उदित साहित्यकारों, रचनाधर्मियों के लिए नर्सरी के रूप में अपनी भूमिका निभाई है।
28 मई रविवार को आयोजित मासिक कवि गोष्ठी की शुरुआत में नगर के उभरते कवि मनोज पाटिल ने अपनी रचना के माध्यम से समाज को संदेश देने का प्रयास किया।उनकी रचना की बानगी देखिए- फूटपाथ पे खड़ी लड़की , दोनों हाथों से मजहब की शर्म को छिपा रही थी,
खुद भूखी थी,अपने को भूखी नज़रों से बचा रही थी
हस्ताक्षर साहित्य समिति अध्यक्ष संतोष ठाकुर अपनी जानी पहचानी अंदाज में छत्तीसगढ़ी रचना का पठन किया ।-
आंदोलन करे ल पडही,
यही दिन देखव फल मिलही
अब तक धोखा में रहिगेव
यही सरकार चेत करही
हास्य व्यंग रचनाओं के धनी कवि घनश्याम पारकर ने अपनी रचना- वाह,वाह रे शीशी के दारु,छठ्ठी होवय मरनी ,
सब पिये बर होवथे उतारू के माध्यम से अपने साथियों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
वरिष्ठ कवियत्री शिरोमणि माथुर की गूढ चिंतन और दर्शन प्रगट करती रचना-
जीवन बीत चला पल,पल जीवन बीत चला,
कुछ सीख चला पल,पल कुछ सीखा चला
जीवन की संध्या निकट हुई,विधि का कुटिल विधान चला,
जीवन में कठिन प्रहार सहे,काल चक्र का खेल चला ने तालियां बटोरी सरिता सिंह गौतम 'मधु'ने प्रेम की पराकाष्ठा की तस्वीर अपनी रचना के माध्यम से रखने का प्रयास किया।रचना कुछ इस तरह से-
लम्हा-लम्हा वही याद आते रहे
इस तरह वो सितमगर सताते रहे
क्या बताऊं मैं अपना फ़साना तुम्हें ,
ज़ख्म खाकर भी हम मुस्कुराते रहे
युवा ओजस्वी कवि अमित प्रखर ने रचना के जरिये अपनी बात इस प्रकार कही।रचना कुछ इस तरह से- मूक हो जाएगा क्रांति शंख
इन्कलाब रोता रहेगा
सरस्वती का लाल
यदि सोता रहेगा।
वरिष्ठ साहित्यकार शमीम अहमद शिद्दिकी ने सामाजिक मूल्यों पर केंद्रित संबंधों पर अपनी रचना को एक मुकाम दिया।रचना की पंक्ति इस तरह से-
संबधों का ना टूटे तटबंध
मन से हो मन का अनुबंध
जीवन ऐसे बीते शमीम
जैसे शूल,सुमन और सुगंध
इस कार्यक्रम में अमित कुमार सिन्हा,आचार्य मंहिलांगे, गोविंद कुट्टी पणिकर एवं आंनद बोरकर ने यथार्थ से रुबरु कराती सशक्त रचनाएं पढ़ी।कार्यक्रम का संचालन युवा साहित्यकार अमित प्रखर ने एवं आभार आंनद बोरकर के व्यक्त किया।