कथा में कृष्ण जन्मोत्सव एवं श्री राम जन्मोत्सव पर झूम उठे धर्मप्रेमी..

कथा में कृष्ण जन्मोत्सव एवं श्री राम जन्मोत्सव पर झूम उठे धर्मप्रेमी..

कथा में कृष्ण जन्मोत्सव एवं श्री राम जन्मोत्सव पर झूम उठे धर्मप्रेमी..

कथा में कृष्ण जन्मोत्सव एवं श्री राम जन्मोत्सव पर झूम उठे धर्मप्रेमी..


बाबा रामदेव मंदिर, गंजपारा, दुर्ग में चल रही श्री मद्भागवत कथा के चौथे दिवस कथा वाचक आचार्य वीरेन्द्र महाराज जी साजा वाले ने बताया कि जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए। कथा का संगीतमयी वर्णन सुन श्रद्धालुगण झूमने लगे।

    
कथा के दौरान जैसे भगवान का जन्म हुआ तो पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठा। इस दौरान लोग झूमने-नाचने लगे। भगवान श्रीकृष्ण की वेश में नन्हें बालक के दर्शन करने के लिए लोग लालायित नजर आ रहे थे। भगवान के जन्म की खुशी पर महिलाओं द्वारा अपने घरों से लगाए गए गुड़ के लड्‌डूओं से भगवान को भोग लगाया गया।
   
उन्होंने बताया कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने आमोद प्रमोद के साथ कई राक्षसों का संहार किया और लोगों का कल्याण। भगवान श्रीकृष्ण के गोकुल से मथुरा गमन और फिर द्वारका पहुंचने तक की सम्पूर्ण कथा सुनाकर भक्तों का मन मोह लिया उन्होंने भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए कृष्ण का मथुरा गमन करने एवं कंस वध आदि कथा का वर्णन किया।

     
आचार्य वीरेंद्र महाराज जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में लिखें मंत्र और श्लोक केवल भगवान की आराधना और उनके चरित्र का वर्णन ही नहीं है। श्रीमद्भागवत की कथा में वह सारे तत्व हैं जिनके माध्यम से जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता है साथ में अपने से जुडे हुए लोगों का भी कल्याण करता है। जीवन में व्यक्ति को अवश्य ही भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। बिना आमंत्रण के भी अगर कहीं भागवत कथा हो रही है तो वहां अवश्य जाना चाहिए। इससे जीव का कल्याण ही होता है। 
     
आचार्य जी ने संतो के संबंध में कहा है कि संत का परिचय संत का भेष नहीं होता है। उनका तो मुख्य भेष उनका गुण होता है। आचार्य जी ने भागवत कथा में चौथे दिन श्री कृष्ण एवं श्री राम जन्मोत्सव वर्णन किया। जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण एवं श्री राम से संस्कार की सीख लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा हैं उसके बाद भी वह अपने माता पिता, गुरु के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे। यह सीख में भगवान श्रीकृष्ण से सभी को लेनी चाहिए। आज की युवा पीढी धन कमाने में लगी हुई है लेकिन अपने कुल धर्म और मर्यादा का पालन बहुत कम कर रहे हैं। 
    
श्री राम के जन्मोत्सव के पूर्व आचार्य जी ने बताया कि जिस तरह पूरे विश्व का सिरमौर भारत है ठीक उसी प्रकार भारत का सिरमौर छत्तीसगढ़ है क्योंकि श्री राम की माता की नगरी है और हमारे प्रदेश के भांजे है श्री राम..

     
आज की कथा में मुख्य यजमान श्रीमती तारा रमण पुरोहित परिवार एवं राधेश्याम शर्मा, प्रहलाद रूंगटा, राजेन्द्र शर्मा, पायल जैन नवकार परिसर, राधेश्याम भूतड़ा, जगदीश तापड़िया, प्रवीण पींचा, गौरव बजाज, शकुन देवी दुबे, चंदादेवी शर्मा, दमयंती सेन, प्रभा दुबे, नीलू पंडा, प्रभा मिश्रा, सुहागरानी गुप्ता, चंदा शर्मा, मिथला शर्मा, मधु सोनी, प्रेमलता मिश्रा, अम्बिका पण्ड्या, किरण शर्मा, सारिका शर्मा, कविता जोशी, मनोज भूतड़ा, राम राठी, संजय शर्मा, ऋषि गुप्ता, विक्की शर्मा, दिलीप भूतड़ा, राजाराम जलतारे, कृतज्ञ शर्मा, नमन खण्डेलवाल, एवं सैकड़ो धर्मप्रेमी उपस्थित हुए..

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