हस्ताक्षर सहित समिति ने मनाया मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती

हस्ताक्षर सहित समिति ने मनाया मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती

हस्ताक्षर सहित समिति ने मनाया मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती

हस्ताक्षर सहित समिति ने मनाया मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती

विश्व साहित्य की धरोहर है मुंशी प्रेमचंदजी का साहित्य- सरिता सिंह गौतम


दल्लीराजहरा 1 अगस्त: बीते कल 31 जुलाई को नगर के साहित्यकारों की संस्था हस्ताक्षर साहित्य समिति के द्वारा महान कहानीकार, उपन्यासकार एवं विचारक मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर मुंशी जी की रचनाओं पर विचार गोष्ठी का आयोजन स्थानीय निषाद समाज भवन में आयोजित किया गया कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य जे आर मंहिलांगे ,अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष संतोष ठाकुर ने की। विशेष अतिथी के रूप में सरिता सिंह गौतम उपस्थित थी।
            
कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं पूजा अर्चना कर किया गया।महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य जे आर मंहिलांगे ने अपने सारगर्भित उद्बबोधन में कहा कि- प्रेमचंद जी की रचनाएं सभ्यता, संस्कृति और परिवेश तथा उस समय की परिस्थितियों का विवेचन है। गोदान उनकी विश्वप्रसिद्ध रचना है, जिसमें गरीब तबके को आधार बनाया गया।उनकी कहानियों में पात्र बोलते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संतोष ठाकुर ने कहा कि -आज महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती और सुर सम्राट मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथि है। संतोष ठाकुर ने खेद व्यक्त किया कि महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी को अखबारों में दुरदर्शन में कहीं भी याद नहीं किया गया।यह दुःख का विषय है।उनकी 'गबन' 'कर्मभूमि' निर्मला कालजयी रचनाएं हैं।

विशेष अतिथि सरिता सिंह गौतम ने 'प्रेमचंद जी व उनकी भाषा शैली' पर प्रकाश डाला-साहित्य सृजन में भाषा शैली उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी गायक की मौलिक आवाज़।गायक की आवाज की मधुरता एवं अद्वितीयता उस गायक को व्यक्तिगत पहचान दिलाती है,उसी तरह किसी भी साहित्यकार की भाषा शैली'उसके वैयक्तिक प्रभाव को स्पष्ट करती है।हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रेमचंद जी की भाषा शैली' अलग ही पहचान रखती है। प्रेमचंद जी ने साहित्य सृजन में नई भाषा शैली'का परिचय दिया।वे उर्दू के अच्छे जानकार थे,अत: उनकी रचनाओं में हिन्दी और उर्दू का अच्छा मिश्रण नज़र आता है।उनकी कहानियों एवं उपन्यासों में उर्दू शब्द कभी अवरोध उत्पन्न नहीं करते,बल्कि दुगूना प्रभाव डालते हैं।उनकी इस शैली को हिन्दुस्तानी भाषा के रूप में जाना जाता है। वे पात्रों के संवाद बड़ी सहजता से रचते थे। ग्रामीण क्षेत्रों का वर्णन आंचलिक लहजे में तथा शहरी जीवन का वर्णन नागरीय शैली में।उनकी भाषा शैली'की विविधता समस्त साहित्यकारों के लिए प्रेरक है। प्रेमचंद जी का समग्र साहित्य उच्च कोटि के हैं। अत्यंत सरल भाषा एवं स्वाभाविक वर्णन शैली के साथ हृदयस्पर्शी हैं। उनका समस्त साहित्य उनके व्यक्तित्व का परिचायक हैं।उनका साहित्य विश्व साहित्य की धरोहर है।

विचार गोष्ठी में साहित्य समिति के महासचिव अमित प्रखर एवं चेतन सार्वा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्यपाठ एवं कहानी पाठ किया गया। शमीम अहमद शिद्दिकी की मुक्तक के द्वारा संबंधों पर रचना इस प्रकार रही-संबधों के न टूटे तटबंध,मन से हो मन का अनुबंध
जीवन हमारा ऐसे बीते 'शमीम'
जैसे शूल,सुमन और सुगंध! अमित कुमार सिन्हा ने - छोड़ आई हूं बाबुल का आंगन पिया
डोर जीवन का तेरे हवाले किया इस सुंदर गीत से सबका मन मोह लिया।शोभा बेंजामिन ने मणिपुर की घटना पर अपना आक्रोश इस प्रकार व्यक्त किया- आज फिर आहट आने लगी है,आज फिर कोई बेटी सुलगने लगी है,हर बार चंद मोमबत्ती जला देने से , न्याय नहीं मिलता
हर बार सुर्खियों पर चर्चा होने से, इंसाफ नहीं मिलता ।
घनश्याम पारकर ने अपनी सशक्त रचना से वाहवाही बटोरी जब जब धरती पर हुआ अत्याचार,तब हुआ महाशक्ति का अवतार,
खत्म करना हैअन्याय और अत्याचार
कलयुग को भी चाहिए एक महावतार। मानवीय संवेदना का सुंदर चित्रण संतोष ठाकुर ने इस प्रकार किया-साहित्य की सेवा में समर्पित भावों का
,कुछ तो रिश्ता है ,जीवन में अभावों का,
जो शब्दों से खंगालें जाते हैं संवेदनाएं,
यूं भी इलाज होता है,दिल के घावों का। चेतन दास सार्वा की सुंदर रचना की बानगी इस प्रकार रही- नेह की बाती जलाए रखना,
मन में प्रेम जगाए रखना,
भीड में धुंधलके हो जाते हैं चेहरे
लौटूंगा जरूर,इस जगाए रखना।
कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। नारायण राव एवं राजेश्वरी ठाकुर ने अपनी,अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को सन्देश दिया।इस कार्यक्रम में मोहन साहू,प्रमोद,अभिनव एवं द्रोपदी साहू की विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन अमित प्रखर ने एवं धन्यवाद ज्ञापन चेतन सार्वा ने किया।

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