हस्ताक्षर साहित्य समिति ने नई पीढ़ी के प्रतिभाओं को आगे लाने का बीड़ा उठाया
दल्ली राजहरा 21अगस्त। नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति आने वाली पीढ़ी में साहित्य के प्रति अभिरुचि बढ़ाने एवं उनकी प्रतिभाओं को आगे लाने का बीड़ा अपने कंधों में उठा लिया है। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर गत दिवस समिति द्वारा काव्य लेखन एवं साहित्य के प्रति रुचि रखने वाले युवाओं तथा छात्र-छात्राओं के लिए 'बाल काव्य गोष्ठी' का आयोजन निषाद भवन में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य जे .आर. महिलांगे ,अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती शिरोमणि माथुर ने की। विशेष अतिथि के रूप में गीतकार व गजलकार लतीफ खान लतीफ' ,संतोष ठाकुर ' सरल', शमीम अहमद सिद्धकी गोविंद कुट्टी पणिकर, घनश्याम पारकर तथा श्रीमती सरिता गौतम ' मधु ' उपस्थित थी।
समिति के अध्यक्ष संतोष ठाकुर ' सरल ' ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में बाल साहित्यकारों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करते हुए देश का आदर्श नागरिक बनाना है। साहित्य ही समाज का दर्पण है। अध्यक्षता की अध्यक्ष वरिष्ठ लेखिका श्रीमती शिरोमणी माथुर ने कहां की पाठ्य पुस्तकें आज भी पुरातन सोच और दिशा का त्याग नहीं कर पाई है। जबकि बच्चों की दुनिया का हर पहलू तेजी से बदल चुका है। यह सब बाल साहित्य के माध्यम से रेखांकित हो सकता है। जिससे बच्चो में सजगता ,आत्मविश्वास, गतिशीलता तथा सृजनता का विकास हो सके। साल भर बच्चा कुछ पाठ्य पुस्तकों को उलट पलट कर उदासीन हो जाता है, पाठ्य पुस्तकों से हटकर बाल साहित्य उसमें कल्पना जगाने का धारदार हथियार है। इसके चलते बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित किया जा सकता है। परंतु बाल साहित्य का अभाव बहुत बड़ी बाधा है।
विशेष अतिथि लतीफ खान ' लतीफ' ने छंद विधान और काव्य सृजन पर पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाल साहित्य ही वह सहायक सामग्री है जिसकी सहायता से बच्चे की मौखिक भाषा शैली संवर सकती है। बच्चों में संवाद अदायगी का विस्तार हो सकता है। इससे बच्चे कल्पना लोक में जाकर निष्कर्ष और विश्लेषण करना सिखाते हैं। तत्पश्चात बाल काव्य गोष्ठी प्रारंभ हुआ जिसमें साधिके दुबे ने कन्या भ्रूण हत्या पर शानदार प्रदर्शन करते हुए संदेश दिया कि जो माता-पिता और समाज एक लड़की को बोझ समझते हैं उन्हें अपनी सोच को बदलना चाहिए।साहित्य दुबे ने 'पुष्प की अभिलाषा' के माध्यम संदेश दिया कि हमें पुष्प की तरह होनी चाहिए। जिस प्रकार पुष्प देवी - देवताओं पर अर्पित होने के बावजूद उसमें घमंड नहीं होती है उसी प्रकार हमें भी घमंड नहीं करना चाहिए। नित्या चौबे ने' मेरा हिंदुस्तान ' पर सुंदर काव्य पाठ कर देश प्रेम से ओतप्रोत कर दिया। सृष्टि सरपे ने वीर रस की कविता झांसी की रानी का सुंदर पठन किया। अर्चना ठाकुर ने 'जीवन का मूल्य' पर कहानी के माध्यम से बताया कि एक व्यक्ति तभी बुद्धिमान साबित होता है, जब वह आने वाली मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार रहता है लेकिन उस समय के आने तक हर पल का वह आनंद लेता है। आद्या सिन्हा ने आधुनिक भारत पर काव्य पाठ किया। अजितेश पारकर ने श्री रामचंद्र जी के अयोध्या नगरी के वर्तमान परिदृश्य को अपने गीतों में पिरोकर कर माहौल को संगीतमय कर खूब वाहवाही लूटी। लक्ष्मी निषाद ने देश भक्ति एवं राष्ट्र निर्माण पर ओजस्वी भाषण देकर तात्कालिक राजनीतिक पर प्रहार किया।तनुजा शुक्ला ने अपनी स्वरचित कविता ' वीर जवान ' के माध्यम से संदेश दिया कि सही मायने में यदि कोई नायक है तो वह है हमारे देश के वीर जवान। माया चुनारकर ने अपने स्वरचित कविता ' मेरा भारत महान 'के माध्यम से हमें भारतीय होने पर गर्व महसूस करवाया। काशीफा खान ने ' जब भारत आजाद हुआ ' काव्य पाठ कर उस पल का प्रतिचित्रण किया जब ब्रिटिश शासन के अत्याचार के अंत और स्वतंत्र भारत में पूर्वजों ने खुली हवा में आजादी की सांस ली। गायत्री शर्मा ने ' वीर शहीदों के बलिदान ' पर का काव्य पाठ कर उन सैकड़ो शहीदों को नमन किया जिनके अथक प्रयास से आजादी मिली। छात्र डामन साहू ने वर्तमान चुनावी परिदृश्य पर जबरदस्त भाषण देकर आने वाली चुनौतियों, खामियों तथा सुझावो पर प्रकाश डाला।
अंत में समस्त बाल साहित्यकारों को समिति द्वारा सम्मानित कर उन्हें अपनी लेखनी को पैनी करने और साहित्य को अपने जीवन शैली में शामिल करने को प्रेरित किया। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन टीएस पारकर ने करते हुए कहा कि बाल साहित्य नैतिक आधार पर होनी चाहिए। उसके पन्ने आकर्षक एवं चित्र वाले होने चाहिए। कार्यक्रम का संचालन अमित प्रखर ने किया। इस अवसर पर समिति के वरिष्ठ साहित्यकार,अमित सिंहा, , राजेश्वरी ठाकुर ,शोभा बेंजामिन कामता प्रसाद देशलहरा आदि उपस्थित थे।
टीवी और मोबाईल ने बचपन को चट कर गया
युवा वर्ग,स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं के उद्बोधन से यह बात स्पष्ट रूप से खुलकर आई कि आज की पीढ़ी खेलकूद,साहित्य एवं अन्य गतिविधियों से पूरी तरह से विमुख हो गया है।और इसके स्थान पर टीवी,एवं मोबाईल ने जकड़ लिया है। आने वाली पीढ़ी को इससे उबारने के लिए सामूहिक प्रयास करना होगा।नई पीढ़ी को साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए उसके महत्व एवं उपयोगिता से भली भांति परिचित कराना होगा।आयोजन में यह बात भी सामने आई कि माँ बाप अपने बच्चों को खेलने और पढ़ने की उम्र में टीवी की लत एवं मोबाईल पकड़ा देते है।बाद में नतीजा बच्चों के मन मे पढ़ने की रुचि खत्म हो जाती है साथ ही कई दफ़े बच्चे डिप्रेशन में चले जाते है।कार्यक्रम में इस बात का खुलासा हुआ कि यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ नही किया तो वो कभी माफ़ नही करेगी। जागने का समय आ गया है यदि लापरवाही किये तो हाथ मलने के सिवा कुछ नही रहेगा।