मन के पांच विचार का करें त्याग ,,और सात गुणों को करें जीवन में धारण: संत रामबालक दास 9 सितम्बर
"मन के विकार पर प्रकाश डालें गुरुवर"
शोभना दुबे भोपाल ने बाबा जी के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत की और बाबा जी ने इसका समाधान बताया कि हमारे शास्त्रों में मन के पांच प्रकार के विकार बताए गए हैं,और इन विकारों को दूर करके जो रिक्तता आती है उसे दूर करने के लिए सात प्रकार के गुणों को भी बताया गया है निश्चित ही हमारा मन हमारे विचारों पर ही निर्भर करता है विचार जितने अच्छे होंगे मन उतना ही अच्छा होगा और विचार जितने बुरे होंगे मन का भाव भी बुरा ही होगा,विषय, आता है कि यह विचार उत्पन्न कैसे होते हैं यह विचार हमारे कर्मों से उत्पन्न होते हैं जैसा कर्म करेंगे जैसा संग करेंगे वैसे विचार बनेंगे अच्छा संग, सुकर्म करेंगे तो विचार भी निश्चित ही अच्छे होंगे और कुसंगति होगी और कर्म बुरे होंगे तो विचार भी बुरी होंगे,
पांच तरह के विचार हैं ,काम ,क्रोध लोभ ,मोह और अहंकार, और आत्मा के सात गुण है पवित्रता ,शांति ,शक्ति, स्नेह,प्रसन्नता,ज्ञान और गंभीरता ,, निश्चित ही ईश्वर ने हमें पांच विकार दिए हैं तो सात गुण भी दिए हैँ तो पलडा गुणेा का ही भारी होना चाहिए लेकिन यह निर्भर करता है कि हम इन्हें किस तरह से उपयोग कर रहे हैं, ज्यादातर लोग विकारों का ही उपयोग कए जा रहे हैं और इसीलिए पृथ्वी पर विकारी प्रवृत्ति का विस्तार होते जा रहा है गलत कर्म गलत वातावरण को उत्पन्न करते हैं और अगर हम सही विचारों को साथ दे सही विचारों के माहौल में रहे जैसे कहीं सत्संग करें कहीं पर कथा श्रवण करें, ईश्वर का सुमिरन करें इसलिए ऋषि मुनियों साधु संतों का आश्रम पवित्र माना जाता है।