श्री गणेश जी सनातन औऱ अनादि देव है लीला के कारण वे शिव पुत्र हुये है: सन्त राम बालक दास जी
पाटेश्वर धाम के संत रामबालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में प्रतिदिन प्रातः 10:00 से 11:00 तक 1 घंटे का ऑनलाइन सत्संग आयोजित किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी विभिन्न प्रकार धार्मिक समसामयिक जिज्ञासाओं का समाधान बाबा जी के श्रीमुख से प्राप्त करते हैं
आज की सत्संग परिचर्चा में गिरधर सोनवानी जी ने जिज्ञासा रखी कि गणेश चतुर्थी की चंद्रमा देखना क्यों निषिद्ध है कृपया मार्गदर्शन करें बाबा जी ने बताया कि एक समय गणेश जी के रूप को देखकर के चंद्र देव को हंसी आ गई और उन्होंने उनका उपहास कर दिया तब माता पार्वती ने उन्हें श्राप दिया कि अपनी सुंदरता पर इतना अहंकार उचित नहीं है आज से चतुर्थी के दिन जो देखेगा वह कष्ट भोगेगा ,इसीलिए गणेश चतुर्थी के दिन का चंद्रमा देखना निषेध माना जाता है जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस मे उद्धरीत किया है
पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जिज्ञासा रखी की आदि शंकराचार्य जी द्वारा लिखे गए गणेश स्त्रोत अजं निर्विकल्पं निराकार मेकं निरातंकमद्वैत मानंदपूर्णम। परं निर्गुणं निर्विशेषं निरीहं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम्। का भावार्थ बताने की कृपा करें
बाबा जी ने इस श्लोक के भावार्थ को स्पष्ट करते हुए बताया कि श्री गणेश जी कभी जन्मे ही नही है उनका सदा एक ही रूप है अर्थात वे स्थिर रूप वाले है ,आपका कोई आकार नही है, आप आनंद से परे हो और पूर्ण आनंद ही हो, आप किसी भेदभाव के बिना पूर्ण हो आप ही श्रेष्ठ हो, सब गुणो से परे हो अर्थात सत्व, रजस और तमस का गणेश जी पर कोई प्रभाव नहीं,आप सदैव समान रहने वाले हो, सभी इच्छाओं से रहित है, श्री गणेश आपकी हम पूजा कर रहे है जिनका रूप सर्वोच्च-ब्रह्म का है।