आनेवाली पीढ़ी को हिंदी की गौरवशाली इतिहास से परिचित कराए तभी विश्वभाषा का दर्जा मिल सकेगा --सरिता सिंह गौतम
हस्ताक्षर साहित्य समिति ने हिंदी पखवाड़ा के अंतिम दिवस पर विचार गोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया
दल्लीराजहरा 30 सितंबर। 14 सितंबर से 28 सितंबर तक हिंदी दिवस पखवाड़े के रूप में मनाया जाता है। इसी क्रम में नगर के साहित्यकारों की संस्था हस्ताक्षर साहित्य समिति ने हिंदी पखवाड़ा के अंतिम दिवस 28 सितंबर को काव्य गोष्ठी एवं हिंदी की दशा और दिशा पर विचार गोष्ठी का आयोजन स्थानीय निषाद समाज भवन में किया गया। जिसमे वक्ताओं ने जमकर हिंदी भाषा के उत्थान के किये मिलकर सामूहिक प्रयास करने की वकालत की।
हस्ताक्षर साहित्य समिति समय- समय पर हिंदी भाषा एवं उससे जुड़े विभिन्न पहलू को रेखांकित करने एवं साहित्य के प्रति चिंतन को लेकर आयोजन करती रही है। 28 सितंबर गुरुवार को समिति द्वारा रखी गई विचार गोष्ठी में हिंदी की दशा और दिशा पर सरिता सिंह गौतम ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी भाषा देश के लोगो को ही नही विदेशियों को भी आकर्षित सदियों से करती रही है।तभी तो हिन्दी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना परचम लहरा रही है। हिंदी की व्यापकता को नही पहचान पाने के कारण अपने ही देश मे उपेक्षित सी रह गई है। यही वजह है कि आज भी हिंदी को दोयम दर्जा ही प्राप्त है। संविधान से अनिश्चितकालीन बनवास में है हिंदी। राजनीति की शिकार हुई है हिंदी। संविधान में राजभाषा के रुप में मान्यता ही नहीं मिली है।हिंदी भाषा भारतीयो की आत्मा है।कोटि कोटि कंठों की यह भाषा भारतीय प्रतिबद्धता और लोक चैतन्य की भाषा है।हिंदी भाषी जनसमुदाय न लुप्त होंगे न पराजित और न अस्त होंगे न वे अपनी भाषा को लुप्त पराजित,अस्त और विकृत होने देंगे।सुश्री गौतम ने आगे कहा कि आने वाली पीढ़ी यानी अपने बच्चों को न केवल हिंदी के महत्व से परिचित कराए बल्कि हिंदी में बात करने ,पढ़ने के लिए प्रेरित करें ।साथ ही हिंदी साहित्य गौरवशाली इतिहास से परिचित कराए।ताकि हिंदी भाषा को विश्व भाषा का दर्जा प्राप्त हो सके।
वरिष्ठ साहित्यकार संतोष ठाकुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-हिंदी मातृभाषा होते आज प्रचार , प्रसार की दरकार लिए हुए मुहाने पर खड़ी हुई है।इससे दुखद पहलू और कोई नही हो सकता। वरिष्ठ साहित्यकार जनाब लतीफ़ खान ने विचार गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कोई भी भाषा एक दूसरे की भावना को जोड़ने का काम करती है। दुनियां में सैकड़ो भाषा और हजारों बोलियां है।लेकिन जितनी सरलता से हिंदी में भावनाओं व्यक्त कर सकता है।उतनी माद्दा दूसरी भाषाओं में नही है।
विचार गोष्ठी उपरांत काव्य गोष्ठी में जनाब लतीफ़ खान ने हिंदी भाषा के लिए अलख जगाने की बात अपने गीत के माध्यम से कही_
हिंदी है राजभाषा जग में अलख जगा दो
जन,जन की है ये भाषा,जननी है इसकी संस्कृत।
अमित सिन्हा ने अपनी रचना
'गीत गाता चल मुसाफिर,गीत गाता चल'
क्या पाया क्या खोया,उसका क्यों हिसाब करें। , के माध्यम से अपनी ओर ध्यान खींचा।
संतोष ठाकुर ने अपनी सशक्त रचना आज हम कैसे जी रहें भागदौड़ ही जिंदगी हैं क्या कहिए,
भय,तनाव में आदमी है क्या कहिए' पढ़ी।
हास्य व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर घनश्याम पारकर ने आज गणेश उत्सव में जो विकृति देखने को मिल रही है उस पर चिंता जताई- जेमे नहीं तेमे लम्बोदर ला बइठावत हें,
धोती ला छोड़ के फूलपेंट ला पहिरावत हैं
यहीं देखें बर गेंव एक दिन गणेश ला,
देखत रहि गेंव,वो कर सवारी अऊ भेष ला।
अमित प्रखर ने जन नायक भगवान श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों को अपनी सशक्त रचना के माध्यम से कराया जवाब दिया। वाहवाही बटोरी ।
राम ही प्रारब्ध है,राम ही निष्कर्ष है,
राम बिन उत्थान कैसा,राम तो उत्कर्ष है।।