अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी के 32 वा शहीद दिवस 28 सितम्बर के स्मृति में लेख

अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी के 32 वा शहीद दिवस 28 सितम्बर के स्मृति में लेख

अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी के 32 वा शहीद दिवस 28 सितम्बर के स्मृति में लेख

अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी के 32 वा शहीद दिवस 28 सितम्बर के स्मृति में लेख 


 यह लेख बार-बार मन को द्रवित करता है शंकर योगी जी के अमर शहीद स्थल पर लिखी यह बातें
 शहीदों के चिताओं पर 
लगेंगे हर बरस मेले 
वतन पर मरने वालों का 
बाकी यही निशा होगा 
कभी वह दिन भी आएगी 
जब अपना राज देखेंगे 
तब अपनी जमीं होगी
 और अपना आसमान होगा 

अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी जी का नाम छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन के इतिहास में कोई नया नाम नहीं है l मजदूरों के द्वारा उन्हें भगवान के समक्ष मानकर आज भी पूजा जाता है l नियोगी जी ने मजदूरों की दशा सुधारने के लिए कई आंदोलन किये l उनका उद्देश्य था जर जंगल और जमीन पर यहां के रहने वाले मूल निवासियों का ही अधिकार है तथा उनके दोहन में इनको भी हिस्सा मिलना चाहिए l मजदूर के साथ-साथ किसानों के हक के लिए भी लड़ाई लड़ना उनके आंदोलन का हिस्सा था l नियोगी जी एक समाज सुधारक जी थे l उन्होंने समाज में हो रही बुराई जैसे की शराब और सिनेमा से मजदूरों को दूर करने के लिए कई प्रयत्न किये l ताकि इन बुराई से बचे पैसों का मजदूर अपने परिवारों पर खर्च करे और बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद पर नौकरी कर सके l नियोगी जी ने मजदूरों के बचत के लिए बैंक में खाता भी खुलवाएं ताकि थोड़ी-थोड़ी बचत कर एक बड़ी पूंजी जमा कर सके l नियोगी जी मजदूर नेता के साथ-साथ अच्छे लेखक भी थे l उन्होंने मजदूर की दशा सुधारने मजदूर आंदोलन संबंधित विभिन्न प्रकार के पुस्तक भी लिखे जो आज भी छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के कार्यालय में है जिसे पढ़ा जा सकता है l
  उनका जीवन पारदर्शी था l नियोगी जी सीधे सादे और सरल व्यक्तित्व के धनी थे l वह हमेशा मजदूरों के बीच प्रिय रहे आज के वर्तमान युग में श्रमिक नेता करोड़ का बिल्डिंग खड़ा कर रहा है l उसके विपरीत वह एक झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे l उन्होंने अपने बेटे और बेटियों का नाम भी क्रांति जीत और मुक्ति रखा l उनका एक-एक कदम आदर्श से भरा था l वह जो कहते थे वही करते थे l 
 नियोगी जी का जन्म 19फरवरी 1943 को हुआ था l इनका बचपन का नाम धीरेंद्र था l उनकी शिक्षा जलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल में हुई l छात्र जीवन से नियोगी जी आक्रामक और संघर्षशील रहेl वे ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के स्थानीय इकाई के संयुक्त सचिव रहेl 60 के दशक में दुर्ग जिले में भिलाई में एशिया का सबसे बड़ा स्टील प्लांट की नीव रखी जा चुकी थी l स्टील प्लांट के लिए दल्ली राजहरा के कई खदानों में लौह अयस्क की नई खदानें प्रारंभ हो गई थी l देश के कोने-कोने से काम करने के लिए कुशल कामगार छत्तीसगढ़ पहुंच रहे थे l इसी 60 के दशक में धीरेंद्र भिलाई आ गए उन्हें प्लांट में काम कर रहे मामा जी के सहयोग से कोक वन में काम करने का अवसर मिला l कुछ ही समय में वे मजदूरों के हित में काम करते हुए काफी लोकप्रिय हो गए l उन्होंने मजदूरों को संगठित करना चालू कर दिया और मजदूरों को हक और अधिकार के लिए लड़ना सिखाया l 1967 में मजदूरों को एकजुट कर प्रबंधक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और हड़ताल की शुरुआत हुई l यह मजदूर की सरकारी उपक्रम में सबसे बड़ी हड़ताल थी l प्रबंधक को झुकना पड़ा और उनकी मांगे माननी पड़ी दोबारा ऐसी स्थिति ना बने इसलिए प्रबंधक ने इन्हें नौकरी से निकाल दिया l लेकिन मजदूरों नेयोगी जी के प्रेरणा पाकर आंदोलन को जारी रखा l
धीरेंद्र इसके बाद नए नाम से शंकर गुहा नियोगी के नाम से दल्ली राजहरा पहुंचे l बीएसपी कर्मचारियों से अब वे श्रमिक नेता बन गए थे l दल्ली राजहरा में स्थित बीएसपी के खदानों में मजदूरों की दशा बहुत ही खराब थी l उसे समय ठेकेदारों के द्वारा 14 से 15 घंटे उनसे काम लिया जाता था l उसके एवज में उन्हें मात्र ₹2 की मजदूरी दी जाती थी l इन मजदूरों का कोई ट्रेड यूनियन नहीं था जो मजदूरों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ें l तब नियोगी जी ने इनके बीच पहुंचे और उन्हें संगठित कर 1976 - 77 में नया संगठन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के बैनर तले मजदूरों के हक में काम करना चालू किया l 2 महीने में ही 10000 से ज्यादा मजदूर आंदोलन से जुड़ गएl परिणाम स्वरूप मजदूरों ने एक बड़ी हड़ताल कर दी l मजदूरों को य़ह लाभ जो पहले दो रुपया की मजदूरी मिलती थी वह 272 रुपए हो गई l एक आंदोलन के दौरान 2 - 3 जून 1977 के मध्य रात्रि हुए गोली कांड में 11 मजदूर शहीद हो गए थे l
1990 से राजहरा के साथ अन्य निजी कंपनियां के मजदूर भी नियोगी जी के संगठन से जुड़ते गए l राजहरा से लेकर भिलाई तक मजदूरों के हक में वे सतत आवाज उठाते थे l उन्होंने पूंजीपतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया l बड़े-बड़े उद्योगपतियों इनके ताकतों से घबराने लगे l लिहाजा नियोगी जी को धमकाने की भी कोशिश की गई l यहां तक की उन्हें जान से मारने के लिए कई बार कोशिश की गई l इन सबसे वे खबर रहते थे l लेकिन 1991 की 27 सितंबर की वो काली रात जो मजदूर आंदोलन के इतिहास में धब्बा बनकर रह गया l नियोगी जी किसी काम से रायपुर गए थे l रात्रि में भी देर तक हुड्डको भिलाई स्थित अपने निवास पहुंचे l रात्रि करीब 3:45 को उद्योगपतियों के द्वारा भेजे गए पलटन मल्लाह ने सोते हुए नियोगी जी को गोली मार दी l नियोगी जी मां गो की आवाज के साथ हमेशा हमेशा के लिए शांत होगए l नियोगी जी की हत्या की खबर सुनते ही पूरे मजदूर किसान स्तंध् रह गए l सब की आंखों में आंसू और इन उद्योगपतियों के खिलाफ आक्रोश था l वह 28 सितंबर की सुबह शायद राज हरा कभी नहीं भूल पाएगा lजब नियोगी जी के पार्थिक शरीर को राज हरा लाया जा रहा था l रास्ते में इकट्ठे हुए हजारों आंख आंसुओं थे l लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे l दल्ली राजहरा के छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ स्थित उनके कार्य स्थल लाखों मजदूर और उनके परिवारों से भर गया था l नियोगी जी को श्रद्धांजलि देने वाले का होर लग गया था l भीड़ का अनुमान इसी से लगा सकते हैं l जब नियोगी जी का अंतिम विदाई देने अंतिम यात्रा के लिए नगर भ्रमण किया जा रहा था l उनकी अंतिम यात्रा की लाइन 3 किलोमीटर से भी लंबी थी l लोग पैदल चल रहे थे नियोगी जी अमर रहे का नारा से पूरा दल्ली राजहरा गूंज रहा था l संघर्ष के लिए निर्माण और निर्माण के लिए संघर्ष नियोगी जी का नारा था l खदान में काम करने वाले श्रमिक नेता कुसुम बाई की डिलीवरी केस में मृत्यु हो जाने से आहत मजदूरों ने अपना स्वयं का अस्पताल शहीद अस्पताल का निर्माण किया l जो आज बालोद जिला का सबसे बड़ा अस्पताल है l जहां पर बस्तर जिला मानपुर मोहला धमतरी एवं महाराष्ट्र के सीमावर्ती लोग गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं l अस्पताल में विभिन्न विभाग से संबंधित बच्चों को ट्रेनिंग भी दिया जाता है l अस्पताल को संवारने के लिए नियोगी जी के साथ काम करने वाले डॉक्टर शैवाल जाना का विशेष भूमिका रहा हैl संगठन को मजबूत करने के लिए स्वर्गीय गणेश राम चौधरी  पूर्व विधायक श्रीजनक लाल ठाकुर  सोमनाथ उइके रामचरण नेताम राजा राम बरगद शैलेश बम्बोडे मोहित नारद नासिक यादव जनक साहू नवाब जलानी प्रेमलाल वर्मा शेख अंसार बसंत साहू प्रेमलाल वर्मा यस के सिंह भेख दास वैष्णव एवं बिसे लाल निषाद जो की नियोगी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग करते थे उनका सपना पूरा करने के लिए आज भी संघर्षरत है l

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