नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने दीपावली मिलन समारोह एवं काव्यगोष्ठी आयोजित की

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने दीपावली मिलन समारोह एवं काव्यगोष्ठी आयोजित की

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने दीपावली मिलन समारोह एवं काव्यगोष्ठी आयोजित की

नगर की हस्ताक्षर साहित्य समिति ने दीपावली मिलन समारोह एवं काव्यगोष्ठी आयोजित की
 
पहले राम बसा लो मन में, तब तुम मुझको जला सकोगे


दल्लीराजहरा 22 नवंबर: दीपावली हिंदुओ का सबसे बड़ा त्योहार है। प्रत्येक परिवार इस त्योहार के लिए अपनी हैसियत से बढ़कर इस त्योहार को बेहतर ढंग से मनाने के लिए महीनों पहले तैयारी करता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे रोचक कथाएं एवं मान्यताएं जुड़ी हुई है लगातार पांच दिनों तक मनाए जाने वाले इस त्योहार को लेकर हर व्यक्ति उत्साह से भरा होता है।अपनी खुशियां एवं एक -दूसरे के प्रति आपसी भाईचारा प्रदर्शित करने के ध्येय से नगर की प्रतिष्ठित संस्था हस्ताक्षर साहित्य समिति द्वारा 21 नवंबर मंगलवार को दीपावली मिलन समारोह, काव्यगोष्ठी आचार्य जे आर मंहिलांगे के मुख्यआतिथ्य एवं समिति अध्यक्ष संतोष ठाकुर की अध्यक्षता में स्थानीय निषाद समाज भवन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में विशेष अतिथि शिरोमणि माथुर उपस्थित थी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जे आर मंहिलांगे ने कहा कि दीपावली का पर्व हमें आपसी भाईचारे के साथ रहने की सीख देती है।यह अवसर एक दूसरे के प्रति गिले शिक़वे मिटाने की प्रेरणा देती है।श्री महिलांगे ने अपनी रचना के जरिये अपनी बात रखी।रचना की पंक्ति कुछ इस तरह से-

मानव में प्रेम ज्योति जला दो,
विश्व बन्धुत्व की भावना भर दो।

साहित्यकार संतोष ठाकुर ने अपनी सशक्त रचना के माध्यम से अपनी ओर ध्यान खींचा।रचना के बानगी देखिए-
राम की छबि अलग है,महिमा यही बताते हैं,
वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं,दिव्य दरबार सजाते हैं,
अवधपुरी है जन्मस्थली घाट सरयू के निकट,
चरित्र रामायण में वर्णित,नर रुप में जग में आते हैं।

 शोभा बेंजामिन ने बच्चों को प्रेरित करने वाली शिक्षाप्रद रचना सुनाई। साथ ही रचना के माध्यम से इस बात पर बल दिया कि खराब व्यवहार से मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। वरिष्ठ रचनाकार शमीम अहमद शिद्दिकी की रचना-
डाल पर पत्ते अब नए आने लगे,
फिर परिंदें लौट कर गाने लगे,
चंद मुर्दे बैठ कर श्मशान में,
ज़िंदगी का अर्थ समझाने लगे। ने उपस्थित लोगों की वाहवाही बटोरी।

समिति के वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद कुट्टी पणिकर ने गीतों के माध्यम से जगन्नाथ अमन के प्रति भाव सुमन अर्पित किए। नगर की ख्यातिलब्ध साहित्यकार शिरोमणि माथुर ने रचना के जरिये अपने अंदर के रावण को मारने की बात कही। रचना का भाव कुछ इस तरह से -
 
रावण कुछ कहता है-
अभी राम तुम बने नहीं हो।
कैसे ?मुझको जला सकोगे,
पहले राम बसा लो मन में,
तब तुम मुझको जला सकोगे।

 सरिता सिंह गौतम ने दीपावली पर सस्वर गीत का पाठ किया- 
आई है दीवाली,देखो आई है दीवाली,
सज गई दीपों की कतारें,
छाई है खुशियाली।
दीपों का त्योहार ये कहता-
हो दूर विषमता का अंधियारा,
ऐसे दीप जलाओ हृदय में,
प्रेम का जग में हो उजियारा।

कामता प्रसाद देशलहरा ने दीवाली त्योहार की अगवानी को लेकर अपनी रचना सुनाई।रचना के बोल कुछ इस तरह से - 
सबले बड़े तिहार आगे,
आगे, ग देवारी
सुनव दीदी,सुनव भईया,
सुनव ग संगवारी।

तामसिंग पारकर ने दीवाली की अगुवानी को लेकर किसान और दीवाली त्योहार को परिभाषित किया।

मता गे हे खेत अऊ खलिहान,
आवत हे देवारी,मगन हे किसान।

रचनाधर्मी मनोज पाटिल ने मतलबी लोगो को आगाह करते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की।  मतलब के लिए जो आज भी मेरे कंधें का इस्तमाल करते हैं ,बस अब मैनें आस्तीन में सांप पालना छोड़ दिया। घनश्याम पारकर ने मन के अंदर के रावण से छुटकारा पाने को भावना प्रकट कर उपस्थित लोगो की वाहवाही बटोरी। रचना कुछ इस तरह से-
अब कागज के नहीं,अंतस के रावण ल भगाना हे,
लंका के रावण के जगह म ,अपने देश के रावण ल, भगाना हे। ओजस्वी कवि अमित प्रखर ने अपनी सारगर्भित रचना से सबको सोचने पर मजबूर किया-

मुर्दों सा जिसने जिया हो,उसे जिंदा क्यों कहें
मौत भी उत्सव मनाएं,वो जवानी चाहिए।

काव्यगोष्ठी के उपरांत साहित्य समिति के वरिष्ठ साहित्यकार स्वर्गीय जगन्नाथ अमन के जयंती पर समिति सदस्यों ने भाव सुमन अर्पित किए।अमन के बहुआयामी व्यक्तित्व उनके कृतित्व पर साहित्यकारों ने प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संचालन अमित प्रखर एवं तामसिंग पारकर आभार व्यक्त किया।

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