शासकीय एकलव्य महाविद्यालय डौंडीलोहारा में राष्ट्रीय सेवा योजना व रेडक्रास सोसायटी रेडरिबन क्लब के संयुक्त तत्वाधान में एड्स जागरूकता दिवस अभियान आयोजित किया जाएगा

शासकीय एकलव्य महाविद्यालय डौंडीलोहारा में राष्ट्रीय सेवा योजना व रेडक्रास सोसायटी रेडरिबन क्लब के संयुक्त तत्वाधान में एड्स जागरूकता दिवस अभियान आयोजित किया जाएगा

शासकीय एकलव्य महाविद्यालय डौंडीलोहारा में राष्ट्रीय सेवा योजना व रेडक्रास सोसायटी रेडरिबन क्लब के संयुक्त तत्वाधान में एड्स जागरूकता दिवस अभियान आयोजित किया जाएगा

शासकीय एकलव्य महाविद्यालय डौंडीलोहारा में राष्ट्रीय सेवा योजना व रेडक्रास सोसायटी रेडरिबन क्लब के संयुक्त तत्वाधान में एड्स जागरूकता दिवस अभियान आयोजित किया जाएगा


युथ रेडक्रास सोसायटी व रेडरिबन व महाविद्यालय प्रमुख राजुलाल कोसरे जी ने बताया कि- विश्व एड्स दिवस के दिन महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना रेड रिबन क्लब और सीनियर रेड क्रॉस सोसायटी तथा महाविद्यालय का संयुक्त तत्व में महाविद्यालय से एड्स जागरूकता अभियान रैली तथा विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है साथ ही संस्था प्रमुख ने बताया कि पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि एड्स के अंत में बाधा बन रही हैं। वर्तमान रुझानों के अनुसार विश्व एड्स पर लक्षित वैश्विक लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सकता। लेकिन यूएनडीएस की रिपोर्ट के अनुसार, खतरनाक अवांछनीयताएं , नकारात्मकताएं हैं कि सक्रिय कार्रवाई के लिए एड्स प्रतिक्रिया को प्रभावित किया जा सकता है।

यूएनडीएस ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि दुनिया की कई विचारधाराओं में बढ़ते नए संक्रमण और लगातार हो रही वृद्धि के कारण एड्स बैकलैश खतरे में है। अब, यूएनडीएस की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि अनचाहेपन का कारण क्या है। इसमें यह लिखा है कि विश्व नेता इन दिनों से कैसे दूर रह सकते हैं, और प्रतीकों से पता चलता है कि उनका पालन करने के लिए डेविलियर होने का दावा किया जाता हैराष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम अधिकारी पुरुषोत्तम भुआर्य ने बताया कि एड्स एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (एचआईवी) संक्रमण के बाद होती है। एचआईवी संक्रमण के पश्चात मानवीय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। एड्स का पूर्ण रूप से उपचार अभी तक संभव नहीं हो सका है। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति में एड्स की पहचान संभावित लक्षणों के दिखने के पश्चात ही हो पाती है। रोग रोकथाम एवं निवारण केंद्र द्वारा एड्स के संभावित लक्षण बताये गए हैं। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति, जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं है, में एड्स के लक्षणों की जाँच विशेष रक्त जाँच (cd4+ कोशिका गणना) के आधार पर की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण का अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति एड्स से भी पीड़ित हो। एड्स के लक्षण दिखने में 8 से 10 वर्ष तक का समय लग सकता है। एड्स की पुष्टि चिकित्सकों द्वारा जाँच के पश्चात ही की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इस हद तक कम कर देता है कि इसके बाद शरीर अन्य संक्रमणों से लड़ पाने में अक्षम हो जाता है। इस प्रकार के संक्रमण को "अवसरवादी" संक्रमण कहा जाता है क्योंकि ये अवसर पाकर कमजोर हो रहे प्रतिरक्षा प्रणाली पर हावी हो जाते हैं जो बाद में एक बीमारी का रूप ग्रहण कर लेती है। एड्स प्रभावित लोगों में हुए कई संक्रमण, जो गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं या जानलेवा हो सकते हैं, को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित करती है। एड्स शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इतना दुष्प्रभावित कर देता है कि इस गंभीर बीमारी की रोकथाम या इसका उपचार करना आवश्यक हो जाता है।।राष्ट्रीय सेवा योजना वरिष्ठ स्वयं सेवक धनेश साहू ने बताया कि भारत सरकार ने 1992 में एड्स विरोधी अभियान के रूप में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (प्रथम चरण) की शुरुआत की जिसका उद्देश्य देश में एचआईवी संक्रमण के प्रसार एवं एड्स के प्रभाव को कम करना था ताकि एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी लाई जा सके एवं इसे वृहत स्तर पर फैलने से रोका जा सके। इस कार्यक्रम को वर्ष 1992 से 1999 के बीच लागू किया गया एवं इसके क्रियान्वयन के लिए 84 मिलियन डॉलर का खर्च निर्धारित किया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन एवं इसके प्रबंधन को और मजबूत करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत 1999 में हुई। इस बार यह पूर्णतः केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे एड्स नियंत्रण संस्था के माध्यम से 32 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों एवं अहमदाबाद, चेन्नई एवं मुंबई के नगर निगमों में लागू किया गया।

इस कार्यक्रम के तीसरे चरण को वर्ष 2007 से 2012 के बीच लागू किया गया जिसका उद्देश्य भारत में इस महामारी को और अधिक फैलने से रोकना था। इन सारे प्रयासों की मदद से ही भारत विगत दस वर्षों में एचआईवी संक्रमण के प्रसार को घटाने में सफल हो सका है एवं एचआईवी के नए मामलों में भी कमी देखने को मिली है।

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