दल्ली राजहरा में छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ ने मनाया वीर नारायण सिंह की शहादत दिवस
छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा दल्ली राजहरा के द्वारा आज 19 दिसंबर को शहीद वीर नारायण सिंह के 166 वी शहादत दिवस के रूप में मनाया गया l सबसे पहले छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों से आए हुए छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं का सम्मेलन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के कार्यालय में सुबह 10:00 बजे शहीद वीर नारायण सिंह शहीद कामरेड शंकर गुहा नियोगी वा स्वर्गीय गणेश राम चौधरी जी के तेल चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम आरंभ किया गया l जिसमें संगठन के राजनीतिक कार्यक्रमों पर मोर्चा के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार रखें l दोपहर 2:00 बजे कार्यकर्ता सम्मेलन की समाप्ति की घोषणा की गई l
उसके बाद छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा कार्यालय से रैली के माध्यम से शहीद वीर नारायण सिंह के प्रतिमा स्थल पुराना बाजार चौक पर जाकर शहीद वीर नारायण सिंह के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर वीर नारायण सिंह को लाल सलाम शहीद वीर नारायण सिंह अमर रहे के गगन भेदी नारों के साथ लाल सलामी दिया गया l दीनदयाल रंगारी जी के द्वारा स्व फागुराम यादव के रचित गीत तोर सुरता आथे वीर नारायण जिंदगी के बीच में चल मजदूर चल किसान देश की हो महान मिल जुल के सबों झन शोषण ला टारबो गाकर शहीद दिवस श्रद्धांजलि सभा की शुरुआत की l प्रतिमा स्थल पर आमसभा का आयोजन किया गया जहां पर बाहर से आए हुए प्रतिनिधियों ने शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत और सपनों को याद करते हुए अपने-अपने विचार रखें l इस अवसर पर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक कामरेड जनक लाल ठाकुर कामरेड लैलन कुमार साहू नवाब जिलानी छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के अध्यक्ष सोमनाथ उइके वरिष्ठ कामरेड राजाराम कामरेड शैलेश बम्बोडे कामरेड योगेश यादव कामरेड सुरेंद्र साहू कामरेड गैंद सिंह ठाकुर कामरेड तुलसीराम कोला ने संबोधित किया l कार्यक्रम का संचालन रामचरण नेताम महामंत्री छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ ने किया l छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के द्वारा सोना खान के वीर शहीद वीर नारायण सिंह का इतिहास जिसे दफन कर दिया गया था l उस इतिहास को खोज निकालने और वीर नारायण सिंह की जन्म भूमि कर्मभूमि एवं वर्तमान में क्रांति की तीर्थ भूमि सोना खान जाकर उसके परिवार से मुलाकात करने की जिम्मेदारी शाहिद शंकर गुहा नियोगी एवं सहदेव साहू को सौंपा गया l उन्होंने मिट्टी में दबा दिए गए इतिहास को ढूंढ निकाला l छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने इस इतिहास को जनता तक पहुंचाने के लिए 19 दिसंबर 1979 को सबसे पहले रायपुर में शहीद वीर नारायण सिंह जी का शहीद दिवस मनाया l उसके बाद से वीर नारायण सिंह का शहीद दिवस छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े शहरों में मनाना प्रारंभ किया गया और नवा अंजोर सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से वीर नारायण सिंह के जीवन की कहानी को नाटक के द्वारा जन-जन तक पहुंचाया गया l
शहीद वीर नारायण सिंह जिसकी आज छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ 187 वी शहादत दिवस मना रहा है l वह छत्तीसगढ़ के लिए एक महान क्रांतिकारी के रूप में पूजा जाता है l आज भी इस वीर की गौरव गाथा छत्तीसगढ़ के जनमानस के बीच सुनाई जाती है l प्रदेशवासियों के साथ-साथ पूरे देश में उन्हें एक आदर्श पुरुष के रूप में माना जाता है l गरीबों के अधिकार के लिए लड़ने वाले इस वीर ने अपना जान तक निछावर कर दिए l छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के सोनाखान के लोग आज भी इन्हें देवता के रूप में पूजते हैं l जब हम गरीबों को इंसाफ और उनके अधिकार दिलाने वाली चरित्र की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे दिमाग में एक ही नाम आता है वह है जिसने गरीब देशवासियों की जान बचाने के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया l जमीदार होते हुए भी वह साहूकारों से देशवासियों के भूख के लिए लड़ा उनका नाम है वीर नारायण सिंह l जिन्हें 1857 के छत्तीसगढ़ के प्रथम शाहिद के रूप में जाना जाता है l वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम रामसाय था l कहते हैं कि वे 300 गांव की जमींदार थे पिता की मृत्यु के बाद 35 वर्ष के 7आयु में वह जमीदार बन गए l उनका स्थानीय लोगों से अटूट लगाव था 1856 में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था जो था वह अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार अपने गोदाम में भर लेते थे l भूख से जनता का बुरा हाल था अपने क्षेत्र में जनता का इतना बुरा हाल वीर नारायण सिंह से देखा नहीं गया l उन्होंने कसडोल में अंग्रेजों से सहायता प्राप्त साहूकार माखनलाल की गोदाम से अवैध और जोर जबरदस्ती से एकत्रित किया हुआ अनाज लूट लिया और भुखमरी से पीड़ित जनता को बांट दियाl इस कृत्य से अंग्रेज उन्हें 24 अक्टूबर को 1856 को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया l 1857 को पूरे प्रदेश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए ज्वाला धड़क उठा अंग्रेजों के सेवा में कार्यरत भारतीयों ने भी विद्रोह कर दी l इस समय आजादी के आग की लपटे छत्तीसगढ़ में भी आई l जिससे सोनाखान भी अछूत नहीं रहा l इस कारण 18 अगस्त 1857 को भारतीय सेवा में कार्यरत स्थानी लोग लोगों ने वीर नारायण सिंह को जेल से मुक्त कर लिया और अपना नेता मान लिया जन समर्थन पाने के बाद उन्होंने 500 लोगों की एक बंदूकधारी सेना बनाया l जो अंग्रेजों के दांत खट्टे कर सके और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया शहीद वीर नारायण सिंह कोरपट की दुर्गम पहाड़ियों को अपना केंद्र बनाया था l वह यहां अपनी कुलदेवी मां दंतेश्वरी के साधना करते थे और गुफाओं पहाड़ी दरों में सैन्य अभियान की अभ्यास किया करते थे l अनेक जमीदार इनसे बदला लेने के लिए अंग्रेजों के साथ देने लगे l वह अपने धन के साथ सैन्य संसाधनों की सहायता भी वीर नारायण सिंह के विरुद्ध करने लगे जब अंग्रेज अपनी चाल पर कामयाब नहीं हो सका तब अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह की डूबती रंग पर हाथ रखकर स्थानीय निवासियों के घर जलाकर उन पर अत्याचार करने लगे l
वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया उनका आत्मसमर्पण का मूल उद्देश्य था कि उनके कारण किसी गरीब जनता को हानि न पहुंचे l यह युद्ध उनके और अंग्रेजों के बीच है तो इसका भुगतान एक गरीब जनता क्यों करें अंग्रेजों के द्वारा वीर नारायण सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगाकर कोर्ट में पेश किया गया l जज ने उन्हें 10 दिसंबर 1857 को फांसी देने का फैसला सुनाया उन्हें जहां फांसी दी गई वह जगह आज राज भवन के सामने शहीद वीर नारायण सिंह चौक के नाम पर है l वंशज राजेंद्र सिंह के अनुसार वीर नारायण सिंह से अंग्रेज इतने खौफ खाते थे कि फांसी देने के बाद के शव को अंग्रेजों ने जेल परिसर में 6 दिन तक फांसी पर लटका कर रखा और सातवें दिन जय स्तंभ चौक पर तोप से उड़ा दिया l भारत सरकार ने उनके बलिदान को सम्मान देने के लिए इनकी 130वीं बरसी पर सन 1987 में 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया है l जिसमें अंग्रेजों के द्वारा उन पर किए गए अत्याचार को दिखाया गया है l छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने उनके सम्मान में आदिवासी उत्थान के लिए शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान प्रतिवर्ष देते हैं l