आत्मानंद स्कूल सक्ती में मनाया गया वीर बाल दिवस, साहिबजादों के शौर्य, वीरता, त्याग और धर्मनिष्ठा को किया गया याद
जिला प्रशासनिक अधिकारी सहित भाजपा जिला अध्यक्ष कृष्णकांत चंद्रा सहित जनप्रतिनिधि व भाजपा कार्यकर्तागण हुए शामिल
सक्ति। जिला प्रशासन द्वारा सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्रों साहिबजादो बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्मृति में वीर बाल दिवस कार्यक्रम का आयोजन स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ठ अंग्रेजी माध्यम विद्यालय सक्ती में किया गया। जहां मुख्य रूप से प्रभारी जिला कलेक्टर दिव्या अग्रवाल, पुलिस अधीक्षक एम.आर. आहिरे, जिला शिक्षा अधिकारी बी.एल. खरे, भाजपा जिला सक्ती अध्यक्ष कृष्णकांत चंद्रा, मेधाराम साहू, रामवतार अग्रवाल, खिलावण साहू, मांगेराम अग्रवाल, रामचंद्र, रामनरेश यादव जिला कोषाध्यक्ष भाजपा, नगर पालिका अध्यक्ष सुषमा जायसवाल शामिल हुए।
इस अवसर पर बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेहसिंह जी के जीवनी का चित्र के माध्यम से और विद्यार्थियों के द्वारा बनाए गये मॉडल का प्रदर्शनी लगाया गया जिसे सभी अतिथियों द्वारा अवलोकन किया गया।
आपको बता दे कि सन 1704 में आज ही के दिन तारिक 26 दिसंबर को सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर 7 व 9 वर्ष से भी कम आयु के इन दोनों साहिबजादो को सरहिंद के नवाब वजीर खां ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था और माता गुजरी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था। इन अमर शहीदों के वीरता, त्याग व धर्मनिष्ठा को अमर रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाए जाने का एलान किया है।
साहिबजादों का इतिहास -
आइए जानते हैं श्री गुरु गोबिंद सिंह के उन दोनों साहिबजादों जोरावर सिंह (9) और साहिबजादा फतेह सिंह (7) और माता गुजरी की शहादत का इतिहास, जिनके बलिदान को याद कनरे के लिए वीर बाल दिवस मनाया गया।
बात वर्ष 1704 की है। मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए जब सरसा नदी पर हमला किया तो गुरु जी का परिवार उनसे बिछड़ गया था। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी अपने रसोईए गंगू के साथ उसके घर मोरिंडा चले गए। रात को जब गंगू ने माता गुजरी के पास मुहरें देखी तो उसे लालच आ गया। उसने माता गुजरी और दोनों साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के नवाब वजीर खां के सिपाहियों से पकड़वा दिया।
वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी को पूस महीने की तेज सर्द रातों में तकलीफ देने के लिए ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। यह चारों ओर से खुला और ऊंचा था। इस ठंडे बुर्ज से ही माता गुजरी जी ने छोटे साहिब जादो को लगातार तीन दिन धर्म की रक्षा के लिए सीस न झुकाने और धर्म न बदलने का पाठ पढ़ाया था। यही शिक्षा देकर माता गुजरी जी साहिब जादों को नवाब वजीर खान की कचहरी में भेजती रहीं। 7 व 9 वर्ष से भी कम आयु के साहिब जादों ने न तो नवाब वजीर खां के आगे शीश झुकाया और न ही धर्म बदला। इससे गुस्साए वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। जब छोटे साहिबजादों की कुर्बानी की सूचना माता गुजरी जी को ठंडे बुर्ज में मिली तो उन्होंने भी शरीर त्याग दिया।