तिल्दा नेवरा। सरोरा जंगल की कुर्बानी से आखिरकार किसको फायदा? उठ रहे सवाल।

तिल्दा नेवरा। सरोरा जंगल की कुर्बानी से आखिरकार किसको फायदा? उठ रहे सवाल।

तिल्दा नेवरा। सरोरा जंगल की कुर्बानी से आखिरकार किसको फायदा? उठ रहे सवाल।

तिल्दा नेवरा। सरोरा जंगल की कुर्बानी से आखिरकार किसको फायदा? उठ रहे सवाल।


तिल्दा के समीपस्थ सरोरा जंगल को उजाड़कर उद्योग लगायें जाने को लेकर आहूत जनसुनवाई का भारी विरोध किया गया है।

तिल्दा जनपद पंचायत क्षेत्रांतर्गत ग्राम पंचायत सरोरा के 758 एकड भू भाग में गोदावरी पांवर एंड इस्पात संयंत्र स्थापना प्रस्तावित है, जिसकी जनसुनवाई की गई।
इस मामले पर पंचायत प्रतिनिधियों एवं ग्रामीणो का कहना है कि इस भूखंड पर करीब सात हजार बड़े वृक्ष एवं लगभग 60 हजार मिश्रित पौधे हैं जो केम्पा मद पर वृक्षारोपण किया गया है । 

जानकारी के मुताबिक भू खंड के आधे हिस्सा पर बड़े बड़े ,सागौन ,साजा बहेरा ,तेन्दू, सैहा, चार ,कर्रा जैसे अनेक प्रजाति के वृक्ष है वहीं हाल ही में वृहद पैमाने पर वृक्षारोपण भी किया गया है । बताया जा रहा है कि कथित जंगल में बड़े पैमाने पर जंगली सुअर ,चीता , लोमड़ी, भैंस खरगोश का बसेरा है ।अगर यहां पर उद्योग स्थापित होता है तो यह वन्य प्राणी बेघर हो जाएंगे।

 अगर इस भू भाग में प्रस्तावित गोदावरी पांवर एंड इस्पात संयंत्र की स्थापना होती है जिसके चलते पर्यावरण का महती अंग हजारों वृक्षों की बली चढेगी , इस परिस्थिति में उद्योग से उत्सर्जित होने वाली जहरीली गैस व अन्य पदार्थो से निपटने के लिए किसका सहारा लिया जावेगा ? आखिरकार इसका दोषी कौन होगा ? 
यहां कुल रकबा 234.66 हेक्टेयर शासकीय भूमि को औद्योगिक प्रायोजन के लिए 2021 में उद्योग विभाग को हस्तांतरित करने बतौर इश्तहार जारी किया गया था ।

 इधर संबंधित विभागीय अधिकारियों का कहना है कि कथित शासकीय भूमि अभी उद्योग के लिए हस्तांतरित नहीं हुआ है। कहा जावे तो‌ भूमि आबंटन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुआ है। वहीं पर्यावरण जनसुनवाई के पश्चात ग्रामीण जन व जनप्रतिनिधि उजड़ते जंगल को बचाने उच्च न्यायालय की दरवाजा खटखटाने की तैयारी में ‌लगे हुए हैं ।


श्री दिलिप वर्मा जी की खबर 

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