विश्व आदिवासी दिवस के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के प्रख्यात फोटोग्राफर गोपी कृष्ण सोनी ने फोटोग्राफ़ी के माध्यम से आदिवासीग् संस्कृति को सरंक्षित और प्रसारित करने वाली जिम्मा उठाया है

विश्व आदिवासी दिवस के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के प्रख्यात फोटोग्राफर गोपी कृष्ण सोनी ने फोटोग्राफ़ी के माध्यम से आदिवासीग् संस्कृति को सरंक्षित और प्रसारित करने वाली जिम्मा उठाया है

विश्व आदिवासी दिवस के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के प्रख्यात फोटोग्राफर गोपी कृष्ण सोनी ने फोटोग्राफ़ी के माध्यम से आदिवासीग् संस्कृति को सरंक्षित और प्रसारित करने वाली जिम्मा उठाया है

विश्व आदिवासी दिवस के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के प्रख्यात फोटोग्राफर गोपी कृष्ण सोनी ने फोटोग्राफ़ी के माध्यम से आदिवासीग् संस्कृति को सरंक्षित और प्रसारित करने वाली जिम्मा उठाया है


विश्व आदिवासी दिवस पर आज भिलाई में बैगा जनजाति की जीवन शैली पर 90 फोटो को प्रदर्शित किया.

छत्तीसगढ़ के पंडारिया के रहने वाले गोपी कृष्ण सोनी बैगा जनजाति पर खासकर उनके जीवन शैली पर फोटोग्राफ़ी कर उनकी आदिवासी कला संस्कृति को सरंक्षित और प्रचारित , प्रसारित करने का बीड़ा उठाया है.     
              
वे अपने इस फोटो ग्राफ़ी प्रदर्शनी में इस्पात नगरी भिलाई में बैगा जनजाति आदिवासी के द्वारा अपने विभिन्न जीवन - संस्कृति, पारम्परिक वाद्य यंत्रों कला पारम्परिक वस्तुओं , बांस लकड़ी, कपड़े के दैनिक उपयोग, व सजावटी, वरली पेंटिंग, गोदना संस्कृति, भोजन, जंगली सब्जी औजार, कलाकृतियों आदि फोटोग्राफ़ी के माध्यम से आदिवासी संस्कृति को सरंक्षित कर लोगो के सामने लाने का प्रयास किया है.

छत्तीसगढ़ अंचल के प्रसिद्ध फोटोग्राफर बैगा जनजाति पर विशेष कर फोटोग्राफ़ी प्रदर्शनी के माध्यम से जन समान्य को जागरूकता करना व जनजातीय संस्कृति को मुलरूप में बचाये रखने और उसे संजोए रखने में सहयोग देना है.

आज विश्व आदिवासी दिवस पर भिलाई इस्पात संयंत्र के आधिशासी निदेशक पवन कुमार ने प्रदर्शनी का शुभारंभ किया. आधिशासी निदेशक पवन कुमार गोपी कृष्ण सोनी के फोटोग्राफ़ी प्रदर्शनी अवलोकन किया. और बैगा जनजाति विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित उनके जीवन पर आधारित फोटोग्राफ़ी को सराहा.

इस मौक़े पर बैगा जनजाति डिंडोरी मध्यप्रदेश से नर्तक दलों के द्वारा करमा, परघोनी नृत्य का प्रदर्शन किया गया. ज्ञात हो कि सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 1882 में पूरे राष्ट्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय की संस्कृति के सरंक्षण और संवर्धन के लिए यह दिवस मनाने का फैसला लिया गया था.

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