वक्फ बिल में किए गए संशोधन सकारात्मक हैं और पारदर्शिता लाने के मकसद से किए गए हैं - डॉ. प्रतीक उमरे
दुर्ग नगर निगम के पूर्व एल्डरमैन भाजपा नेता डॉ. प्रतीक उमरे ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह विधेयक मुसलमानों के खिलाफ नहीं है।यह विधेयक मुसलमानों की सुरक्षा करता है।यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक विधेयक है।यह एक बड़ा सुधार है और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करेगा।एक ऐसी संस्था,जो अपारदर्शी,भ्रष्ट और जवाबदेही से दूर थी,उसे आखिरकार व्यवस्थित किया गया है।यह विधेयक लंबे समय से लंबित था।यह वास्तव में भारत और खासकर मुस्लिम समुदाय के लिए एक नया सवेरा लेकर आया है।वक्फ बिल में किए गए संशोधन सकारात्मक हैं और पारदर्शिता लाने के मकसद से किए गए हैं।यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर बनाने और दुरुपयोग को रोकने के लिए है।इस विधेयक का उद्देश्य देशभर में वक्फ बोर्डों के स्वामित्व वाली संपत्तियों को विनियमित करने वाले कानूनों में बड़े बदलाव लाना है।विपक्ष द्वारा लगातार ये नैरेटिव बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है।ये बिल कहीं से मुसलमान विरोधी नहीं है।वक्फ कोई मुस्लिम संस्था नहीं है,वक्फ कोई धार्मिक संस्था नहीं है,एक ट्रस्ट है,जो मुसलमानों के कल्याण के लिए काम करता है।उस ट्रस्ट को ये अधिकार होना चाहिए कि वो सभी वर्गों के लोगों के साथ न्याय करे जो नहीं हो रहा है।डॉ.प्रतीक उमरे ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में नहीं आती तो कई अन्य संपत्तियां भी गैर-अधिसूचित हो गई होतीं।आजादी के बाद 1954 में वक्फ एक्ट पहली बार बना।उस समय स्टेट वक्फ बोर्ड का भी प्रावधान किया गया था।उस वक्त से कई संशोधनों के बाद 1995 में वक्फ एक्ट बना।उस वक्त किसी ने नहीं कहा कि ये गैरसंवैधानिक है।जब सरकार उसी बिल को सुधारकर लाई हैं तो विपक्ष कहती है कि यह गैरसंवैधानिक है।धर्मनिरपेक्षता का चश्मा लंबे वक्त से भाजपा सरकार के फैसलों के खिलाफ पहनकर विपक्ष खुद को सेक्युलरिज्म का सियासी चैंपियन दिखाता रहा,लेकिन वक्फ विधेयक पारित कर मोदी सरकार ने साफ कर दिया है की सेक्युलरिज्म की वो परिभाषा नहीं चलेगी,जो विपक्ष चाहता आया है।